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वर्तमान युग में बुद्ध के मानव धर्म की उपादेयता सहिष्णुता थी। उनका आचरण किंचित व्यंग्यमिश्रित सद्भावना विनय की अखण्ड अभिव्यक्ति था। पाश्चात्य विद्वान बार्थ के अनुसार - 'बुद्ध का व्यक्तित्व शास्त्र एवं माधुर्य का सम्पूर्ण आदर्श है। वह अनन्त कोमलता, नैतिकता, स्वतंत्रता एवं पाप-साहित्य की मूर्ति है।'
बौद्ध धर्म ने ही सर्वप्रथम विश्व को एक सरल तथा आडम्बररहित धर्म प्रदान किया। धर्म के क्षेत्र में उन्होंने सम्यक अहिंसा एवं सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया। अशोक, कनिष्क हर्ष आदि राजाओं में जो धार्मिक सहिष्णुता देखने को मिलती है वह बौद्ध धर्म के प्रभाव का ही परिणाम था। अशोक ने युद्ध विजय की नीति का परित्याग कर धम्मविजय की नीति को अपनाया तथा लोक कल्याण का आदर्श समस्त विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया। अशोक ने बौध धर्म की शिक्षाओं से ही प्रेरित होकर धम्म की विशद् व्याख्या की तथा प्रजा के नैतिक उत्थान एवं सभी प्रकार से उनके कल्याण के लिए तत्पर रहने का आदर्श प्रस्तुत किया। अशोक द्वारा प्रतिपादित प्रत्येक कार्य बौद्ध धर्म से प्रभावित तथा मध्यमार्गी प्रतीत होते हैं।
बौद्ध धर्म के माध्यम से भारत का सांस्कृतिक सम्पर्क विश्व के विभिन्न देशों के साथ स्थापित हुआ। भारत के भिक्षुओं ने विश्व के विभिन्न भागों में जाकर अपने सिद्धान्तों का प्रसार किया। महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं से आकर्षित होकर शक, पार्थियन, कुषाण आदि विदेशी जातियों ने बौद्धधर्म को ग्रहण कर लिया। यवन शासक मिनेण्डर तथा कुषाण शासक कनिष्क ने इसे राजधर्म बनाया और अपने साम्राज्य के साधनों को इसके प्रचार में लगा दिया। अनेक विदेशी यात्री तथा विद्वान बौद्धधर्म का अध्ययन करने तथा पवित्र बौद्ध स्थलों को देखने की लालसा से भारत आये। फाह्यान, ह्वेनसांग, इत्सिंग जैसे चीनी यात्रियों ने भारत में वर्षों तक निवास कर इस धर्म का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त किया। आज भी विश्व की एक तिहाई जनता बौद्धधर्म तथा उसके आदर्शों में अपनी श्रद्धा रखती है।
वर्तमान युग में आवश्यकता है कि विश्व को बौद्धधर्म के माध्यम से मैत्री, करुणा, बंधुत्व, समता, जीओ और जीने दो के अनुरूप शिक्षा दी जाये,