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58 वैदिक संस्कृति पर बौद्धादि धर्म
एवं दर्शन का प्रभाव
दीनानाथ राय
वैदिक संस्कृति पर बौद्ध एवं जैन धर्म के प्रभाव पर विचार करते समय यह आवश्यक है कि हम इन दोनों की धर्मों के उद्भव की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का ध्यान रखें। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि इन दोनों ही धर्मों ने वैदिक संस्कृति के प्रमुख तत्वों की आलोचना की और उसका खण्डन भी किया। इन दोनों धर्मों का अभ्युदय जिस परिवेश में हुआ उसका प्रभाव इन धर्मों के संस्थापकों पर स्पष्ट दिखाई देता है। ये दोनों ही धर्म इस अंचल में विकसित हुए वह गणतंत्रात्मक पद्धति से प्रभवित था। इस परिवेश की विशेषता और उसके आदर्श को इन दोनों ही संस्थापकों ने आत्मसात् किया तथा उसी का प्रचार और प्रसार किया। यह कहा जा सकता है कि बौद्ध धर्म या जैन धर्म के संस्थापकों ने जो विचार प्रकट किये वह इनके मौलिक नहीं थे। वह गणतंत्रात्मक पद्धति में सर्वदा से ही विद्यमान रहे और उन्हीं को स्वीकार कर इनके संस्थापकों ने जो सिद्धान्त या आदर्श समाज के समक्ष रखा वह वैदिक संस्कृति से सर्वथा भिन्न था।
ज्ञातव्य है कि छठी शताब्दी ई० पू० तक उत्तर भारत में राजतंत्रात्मक और गणतंत्रात्मक दोनों ही प्रकार की पद्धतियां विद्यमान थीं। अवदानशतक' में एक कथा आती है जिसके अनुसार मध्यदेश के व्यापारी जब दक्षिण में पहुंचे तो उनके राजा ने इन व्यापारियों से पूछा कि आप कहाँ से आये हो वहाँ किस प्रकार का शासन व्यवस्था है। इन व्यापारियों ने कहा 'देव, केचित् देशाः गणाः धिनाः, केचित् राजाः धिनाः इति।' अर्थात् उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में