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________________ श्रमण धर्म दर्शन की अहिंसा का परवर्ती प्रभाव 329 धर्म की लक्षणों का प्रभाव अहिंसा के रूप में परवर्ती साहित्य और समाज पर जितना पड़ा वह अधिक ध्यातव्य है - 1. महाभारत - अहिंसा परमो धर्मः इति अर्थात् व्यास का कथन है कि सभी धर्मों में अहिंसा प्रथम धर्म है। 2. गीता - श्रीमद् भागवत गीता के दैविय सम्पदा का वर्णन करते हुए भगवान कृष्ण अहिंसा के सम्बन्ध में कहा है कि - अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिर पैशुनम्।' 3. अष्टांग योग - योग दर्शन में जिन आठ अंगों का उल्लेख किया गया है उसमें अहिंसा का प्रथम स्थान उल्लिखित है - अहिंसा सत्यम अस्तेय ब्रह्मचर्या परिग्रहाः यमा इति। मनु स्मृति - मनुस्मृति में उल्लेख है कि स्वार्थ की सिद्धि के लिए निरपराध प्राणियों पर हिंसा नहीं करनी चाहिये - योऽहिं सकानि भूतानि हिनस्त्यात्मसुखेच्छया। स जीवंश्च मृतश्चैव न क्वचित् सुखमेधते।।' 5. पुराण - व्यास ने अष्टादश पुराणों का सार तत्व प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि - अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्। परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्।। 6. महात्मा गांधी- जैन बौद्ध श्रमण परम्परा का अहिंसा तत्प प्रभाव आधुनिक भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति का महत्वपूर्ण साधन अहिंसा को महात्मा गांधी ने चरितार्थ कर दिया कि - दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल। साबरमती के संत तुने कर दिया कमाल।। यह भारत की अहिंसा प्रयोग की महानतम उपलब्धि थी आज सम्पूर्ण विश्व विनाशक, विध्वंसक, संहारक, अस्त्रों, शस्त्रों के निर्माण में लगा हुआ है और सम्पूर्ण मानवता भयभीत है कि कोई भी पागल परमाणुविक हथियारों में आग न लगा दे और मनुष्य जाति हमेशा के लिए समाप्त हो जाय। इसलिए आज के युग में अहिंसा सबसे अधिक अनिवार्य और अपरिहार्य मानव धर्म बन गया है।
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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