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जसवल से प्राप्त नवीन सूर्य प्रतिमाएं
ज्ञान प्रकाश राय, अविनाशपति त्रिपाठी
अति प्राचीन काल से ही पूर्वी उत्तर प्रदेश मानव की गतिविधियों का केन्द्र रहा है। शाक्य, कोलियों, मल्लों, मोरियों की विशिष्ट राजवंशीय परम्परा ने इस क्षेत्र के लोक जीवन में समृद्धि की नई परिभाषा दी। जलवायुविक एवं अनुकूल परिस्थितियों ने यहाँ के समाजार्थिक विकास में व्यापक सहायता प्रदान की। फलस्वरूप यहाँ कला परम्पराओं का भी विकास हुआ। प्राचीन अचिरावती (वर्तमान राप्ती) के इस क्षेत्र से अनेक सूर्य प्रतिमाओं का प्राप्त होना विशिष्ट है। साथ ही यह इस क्षेत्र में सौर्य सम्प्रदाय के प्रसार का सूचक भी है। हाल ही में ग्राम जसवल (निकट पीपीगंज) से नई सूर्य प्रतिमाएं प्राप्त हुई
हैं
गोरखपुर जनपद के उत्तरी भाग में बसा उपनगर पीपीगंज से 7 कि०मी० दूर जसवल ग्राम स्थित है। यहाँ से कृषि कार्य के दौरान उपलब्ध प्राचीन सर्य की प्रतिमा अत्यन्त आकर्षक है जो ग्राम में ही स्थित भारतीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय राजबारी के दक्षिण में कृषि कार्य करने के दौरान बालू का पाषाण से निर्मित दो अत्यन्त भव्य सूर्य प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं। वर्तमान में एक प्रतिमा स्थानीय निवासी श्री निर्मल मल्ल के दरवाजे पर अवस्थित है क्योंकि यह प्रतिमा खण्डित है अतएव स्थानीय निवासी इसका पूजा अर्चन नहीं करते। यह खण्डित प्रतिमा बालूका पाषाण निर्मित है। इसी गांव से जो कृष्ण पाषाण से निर्मित दूसरी प्रतिमा प्राप्त हुई हैं। वह स्थानीय एक मन्दिर में स्थापित है। ग्रामवासी इस प्रतिमा को विष्णु प्रतिमा समझ कर पूजन अर्चन करते हैं। इसी मन्दिर के प्रांगण में पत्थर का एक फलक प्राप्त हुआ है जिस पर वराह अवतार