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भारतीय संस्कृति पर बौद्ध परंपरा का प्रभाव
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हजार विद्यार्थी थे । वे सब महायान की शिक्षा पाते थे। 18 पंथों के ग्रंथ पढ़े जाते थे, जिनमें वेद-वेदांग थे, हेतु विद्या, शब्द विद्या, चिकित्सा विद्या, अथर्ववेद या मंत्रविद्या, सांख्य आदि विद्याएं थीं । तिब्बती स्रोतों से पता चलता है कि नालंदा और वलभी महाविहार के अलावा अन्य कई बौद्ध विश्वविद्यालय थे जैसे - विक्रमशिला, जगद्दल और ओदंतपुरी । इनमें विक्रमशिला विशाल एवं प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था, इसे बौद्ध पाल राजाओं का आश्रय प्राप्त था । उल्लेखनीय है कि नालंदा तथा अन्य बौद्ध विश्वविद्यालयों में किए गये वाद-विवाद, ब्राह्मणधर्मीय तथा बौद्ध विचारों और संस्कृति के समन्वय में अत्यंत सहायक सिद्ध हुए और भारतीय सांस्कृतिक परंपरा की समृद्धि में योगदान किए।
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि बौद्ध धर्म ने भारतीय संस्कृति के अनेक पक्षों को प्रभावित एवं समृद्ध किया। राधाकृष्णन के शब्दों में : बौद्ध धर्म भारत की संस्कृति पर अपना स्थायी चिन्ह छोड़ गया है। सब ओर इसका प्रभाव दृष्टिगोचर है। हिन्दू धर्म ने इसके नीतिशास्त्र के सर्वोत्तम अंश को अपने में समाविष्ट कर लिया है जीवन के प्रति एक नया आदर, पशुओं के प्रति दया, उत्तरदायित्व का भाव और उच्चतर जीवन के प्रति उद्योग- ये सब बातें एक नये वेग के साथ भारतीय मस्तिष्क को अवगत करायी गयी हैं । बौद्ध प्रभावों को ही यह श्रेय प्राप्त है कि उनके कारण ब्राह्मण परंपरा की धर्म-साधनाओं में अपने उन अंशों को छोड़ दिया जो मानवता और बुद्धिवाद के अनुकूल नहीं थे । बौद्ध धर्म वस्तुतः बसंत के उस मलयानिल के समान था जिसने भारत सहित एशिया के उपवन को एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक अपनी संस्कृति के झोकों से सुरभित और पुष्पित कर दिया ।
संदर्भ
1. श्यामाचरण दुबे, परंपरा और परिवर्तन, भारतीय ज्ञानपीठ नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण 2001 पृ० 71-72
2. श्यामाचरण दुबे, तत्रैव, पृ० 74
3. गोबिन्दचन्द्र पाण्डेय, बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ, तृतीय संस्करण, 1990, पृ० 31
4. पी० वी० बापट (सम्पा० ), बौद्ध धर्म के 2500 वर्ष, प्रकाशन विभाग, नयी