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श्रमण-संस्कृति
कराया था। युवानच्चाड का कथन है कि यह पाटलिपुत्र के प्राचीन नगर के दक्षिण पूर्व में स्थित था और बौद्ध धर्म ग्रहण करने के पश्चात् अशोक ने इसका निर्माण करवाया था, दिव्यादवान में प्राय: इसका उल्लेख हुआ है। यह आयम कौशाम्बी में स्थित कुक्कुटायम से भिन्न था।
जेतवन विहार
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उत्तर भारत में स्थित यह एक राजसी उद्यान था, जो बुद्ध का एक प्रिय आम और बौद्ध धर्म का एक प्राचीन शिक्षा केन्द्र था । यह श्रावस्ती (आधुनिक सहेत - महेत) से दक्षिण में एक मील दूर पर स्थित था । श्रावस्ती के अंचल में स्थित यह बौद्ध शिक्षा का एक अधिष्ठान था, जो राजकुमार जेत के सत्कार्यों को अमर बनाये हुए है जिसने महावंशटीका के अनुसार जेतवन उद्यान की स्थापना की थी। विनय के विवरण के अनुसार श्रेष्ठी ने वहाँ पर अनेक भवन यथा आवास कक्ष (विहार) विश्राम गृह (परिवेण ), कोषगृह (कोटठक), अग्निशालाओं, (अग्निशाला ) संयुक्त उपत्थानशालाएं, शौचगृह कृटी, कुएं, स्नानागार, तालाब और मण्डप आदि बनवाये । श्रावस्ती के इस स्थल का उल्लेख ल्यूडर्स की तालिका संख्या 731 एवं जातक संख्या 5 में प्राप्त होता है।
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नागार्जुनिकोण्ड विहार
यह पहाड़ी आंध्र राज्य के गुंटुर जिले के पालनाड तालुका में स्थित है। यह कृष्णा नदी के दाहिने तट पर छायी हुई है । नागार्जुन पहाड़ी, जो एक विशाल चट्टानी पहाड़ी है मचेरिया रेलवे स्टेशन से 16 मील पश्चिम में स्थित है। नागार्जुनीकोण्ड से प्राप्त अभिलेखों से यह प्रकट होता है कि दूसरी एवं तीसरी शताब्दी ई० में विजयपुरी नामक प्राचीन नगर दक्षिण भारत का सबसे बड़ा एवं अत्यन्त महत्वपूर्ण बौद्ध सन्निवेश रहा होगा। स्तूप विहार एवं मंदिर बड़ी ईंटों से बने थे, ईंट मिट्टी के गारे से चुनी गयी थी और दीवारों पर पलस्तर था । नागार्जुनीकोड का प्रत्येक विहार स्वयं में पूर्ण था ।
कान्यकुब्ज
इसे गधिपुर, कुशस्थल और महोदय भी कहा जाता है। यह एक