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भारतीय बौद्ध शिक्षा केन्द्रः विहार-आयाम
देखरेख इन्द्रगुप्त नामक एक घेर किया करता था । अशोक के काल में यहाँ पर तृतीय बौद्ध संगीति हुयी थी । अशोक ने अपने एक अमात्य को इस आयम में भेजकर भिक्षु सम्प्रदाय से उपोसथ समारोह का शुभारम्भ वहीं पर करने का निवेदन किया था । इस आयम में यथार्थ धम्म का संकलन किया गया था । अनेक भिक्षुओं के साथ भितिण्ण नामक एक स्थविर इस आयम से पाटलिपुत्र
आया था।
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महावोधि विहार
इसका प्राचीन नाम उरूवेला था जो बुद्धघोष के अनुसार एक विशाल रेतीले टीले का वाचक था । समन्तपासादिका के अनुसार जब किसी पुरुष के बुरे विचार उत्पन्न होते थे, तब उसे निकटवर्ती एक स्थान पर मुट्ठी भर बालू ले जाने का आदेश दिया जाता था। इस प्रकार से ले जायी गयी बालू से श्नैः शनैः एक विशाल टीला बन गया । यह विहार गया से छः मील दक्षिण में स्थित है। बुद्ध गया से गया की दूरी तीन गावुल या छः मील से थोड़ा अधिक थी । इससे बुद्ध गया कहा गया था क्योंकि यहाँ पर गौतम बुद्ध ने प्रसिद्ध वट- वृक्ष के नीचे बोधि या सम्बोधि प्राप्त किया गया था । महानामन के बोधगया अभिलेख में (169वाँ वर्ष) बोध गया के विख्यात बौद्ध-स्थल का वर्णन मिलता था । उस अभिलेख में वट-वृक्ष के चतुर्दिक बने हुए घेरे को 'बोधिमण्ड' कहा गया है। बोध गया अभिलेख के एक अनुलेख से हमें ज्ञात होता है कि कोई चीनी तीर्थयात्री महाबोधि विहार में लटकाने के लिए एक सुवर्ण-रचित काषाय ले
आया था।
कुक्कुटायम
यह पाटलिपुत्र में था। मुण्ड नामक एक मगध नरेश यहाँ पर नारद ऋषि को देखने और उनका उपदेश सुनने आया था। ऋषि ने उनको उपदेश दिया और रानी भट्टा की मृत्यु के दुःखों से अभिभूत होने के कारण उसे सान्त्वना दी। तत्पश्चात् उन्होंने सदा की भांति अपने कर्तव्य पालन किये। इस आयम में भट्ट नामक एक भिक्षु रहता था और उसने बुद्ध के प्रसिद्ध शिष्य आनन्द से बातचीत की थी। बुद्धपोष के अनुसार कुक्कुट सेट्ठा ने इस आयम का निर्माण