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38 प्राचीनतम् बौद्ध संघ और काशी
संगीता पाण्डेय
बुद्धकालीन काशी षोडस महाजनपदों में एक और कौशल राज्य के अधीन थी। बौद्ध वाङ्गमय में काशी के वाणिज्य व्यापार तथा सर्वक्षेत्रीय सुख-समृद्धि के अनेक उदाहरण सुरक्षित है। स्वतंत्र काशी की राजधानी वाराणसी बुद्ध-युगीन छः महानगरों में एक तथा तत्कालीन उत्तर भारत के शिक्षा और संस्कृति के केन्द्र के रूप में प्रख्यात थी, रोचक है कि गौतम बुद्ध की आध्यात्मिक गवेषणा - बोधगया में बोधि- प्राप्ति के साथ पूर्ण हुई, पर भव बाधा से लोगों के निस्तारण सम्बन्धी करुणा - प्रसूत वेदना के कारण उन्होंने समाज को सन्मार्ग दिखाने का संकल्प लिया और धर्मदेशना के प्रथम स्थल के रूप में वाराणसी के पास अवस्थित, आधुनिक सारनाथ से समीकृत ऋषिपत्तन मृगदाव का चयन किया। यद्यपि पालि वाङ्मय में सारनाथ के प्रति इस प्रकार के आकर्षण के पीछे बोधि - प्राप्ति के पूर्व के बुद्ध के सहयोगी पञ्चवर्गीय भिक्षुओं की उपस्थिति का हवाला दिया गया है, जो प्रथम धर्मदेशना के लिए ज्ञान की दृष्टि से परिपक्व व्यक्ति की उपेक्षा के विचार से स्वाभाविक भी है, परन्तु यह भी सम्भव है, कि इस प्रकार के निर्णय की पृष्ठभूमि में काशी और उसकी राजधानी वाराणसी की सुख-समृद्धि और ख्याति तथा भिक्षाचर्या की सुलभता की परोक्षतः पुष्टि यहाँ की पञ्चवर्गीय भिक्षुओं के आवास से भी होती है।
महावग्ग और मज्झिम निकाय के अरियपरियेसन सुत्त दोनों में ही धर्म चक्र प्रवर्तन की घटना का किञ्चित विस्तार से उल्लेख है। ऐसा वर्णन है कि ऋषिपत्तन मृगदाव पहुंचने पर उनकी तथा कथित तपभ्रष्टता का ध्यान कर