________________
212
श्रमण-संस्कृति संस्कृति की यही आन्तरिक शक्ति उसे बदलते हुये परिवेश व आक्रमणकारी प्रवृत्तियों का दृढ़ता पूर्वक मुकाबला करके मजबूती के साथ खड़े रहने का बल प्रदान करती है। विश्व की अनेक संस्कृतियां इसी आन्तरिक संजीवनी शक्ति के अभाव के कारण लुप्त हो गयी परन्तु भारतीय संस्कृति इक्कीसवीं सदी की वैश्विक व भूमण्डलीय ताकतों से दृढ़ता से मोर्चा लेती हुयी आज भी मजबूती के साथ डटी हुई हैं। भारतीय संस्कृति की शाश्वतता व निरन्तरता का इससे बढ़कर प्रमाण और क्या हो सकता है।
प्राचीन काल से ही भारत भूमि अनेक संस्कृतियों, धर्मों एवं सम्प्रदायों की क्रीड़ा स्थली रही है तथा इनकी विभिन्न प्रवृत्तियों तथा जीवन विद्याओं में संघर्ष और समन्वय के द्वारा भारतीय इतिहास, सभ्यता व भारतीय संस्कृति का विकास हुआ है। इस विकास में आर्य एवं आर्येत्तर सांस्कृतिक परम्पराओं का समन्वय भारतीय सभ्यता के निर्माण की आधारशिला सिद्ध हुई। इस बौद्धिक व आध्यात्मिक आन्दोलन की चरम परिणति हमें बौद्ध एवं जैन धर्मों के अभ्युदय - काल में दिखायी देती है।
महात्मा बुद्ध ने ईसा पूर्व छठी शताब्दी में एक नई धार्मिक क्रान्ति का सूत्रपात किया। बौद्ध धर्म के संस्थापक व प्रवर्तक महात्मा बुद्ध एक नवीन युग के प्रणेता थे जो अपने जीवन के पैंतालीस वर्षों तक संसार से मुक्ति पाने का उपदेश देते रहे और अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करते रहे। मानव जीवन के दुःखों से कातर, जीवन की क्षण-भंगुरता से विकल और भावुक मन से सांसारिक वैभव व विलासितापूर्ण जीवन के सुखों से मुख मोड़कर परम् शान्ति की अवस्था 'निर्वाण का सन्देश देने वाले सिद्धार्थ ही जप, तप एवं कठिन साधना के बल पर ज्ञान प्राप्ति के उपरान्त महात्मा बुद्ध कहलाये जाने लगे। महात्मा बुद्ध द्वारा स्थापित बौद्ध धर्म अपनी विलक्षण विशिष्टताओं के कारण केवल भारतवर्ष ही धर्म नहीं वरन् पूरे विश्व के महानतम धर्म रूप में प्रसिद्ध हो गया। बुद्ध के जीवन काल में ही मगध, कौशल, कौशाम्बी, लिच्छिवी, मल्ल तथा शाक्य गणराज्यों की जनता ने बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया था। अपने प्रादुर्भाव के कुछ ही समय में बौद्ध धर्म समस्त भारत में फैल गया था तथा बुद्ध के देहावसान के बाद यह धर्म अपनी विशिष्टताओं के कारण भारत