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भारतीय चिन्तन और संस्कृति को बौद्ध धर्म का योगदान
वीणा गोपाल मिश्रा
भारतीय संस्कृति की जड़ें बड़ी गहरी हैं । भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का अपना एक स्वतंत्र एवं गौरवशाली अतीत रहा है। यूनान, मिस्र और रोम की अनेक समृद्धिशाली शक्तियां काल के गर्त में समां गईं परन्तु भारतीय संस्कृति अनेक विपरीत परिस्थितियों, आक्रमणों व झंझावातों को साहस के साथ झेलती हुयी आज भी मजबूती के साथ खड़ी हुयी हैं। मशहूर कवि इकबाल की प्रसिद्ध पंक्तियों का उल्लेख करना यहाँ समीचीन प्रतीत होता है कि
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यूनान, मिस्र, रोमां सब मिट गये जहाँ से, अब तक मगर है बाकी नामों निशां हमारा। कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन इश्के जहाँ हमारा।
नित्य परिवर्तनशीलता प्रकृति का नियम है । संस्कृति भी नित्य परिवर्तनशील होते हुये अपनी निरन्तरता को बनाए रखती है और निरन्तरता बनाये रखने के लिए संस्कृति का बाह्य व आन्तरिक दोनों रूपों से सशक्त होना बहुत जरूरी है। संस्कृति की बाह्य शक्ति किसी भी समाज के रहन-सहन, सुख-समृद्धि व भौतिक उन्नति के रूप में देखी जा सकती है, परन्तु संस्कृति का आन्तरिक रूप उसकी संजीवनी शक्ति होती है। किसी भी समाज का चिन्तन व दर्शन उस समय व देश की संस्कृति का आन्तरिक रूप होता है।