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(xix) जिनकी पैठन्यनाधिक रूप से प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व की सभी विधाओं में है। वैदिक संस्कृति एवं बौद्ध-धर्म दर्शन को उन्होंने अपने अध्ययन के मुख्य क्षेत्र के रूप में चुना। उनकी शोध कृति, टेक्नालोजी इन वैदिक लिट्रेचर भारतीय संस्कृति का एक नया आयाम प्रस्तुत करने के कारण विद्वज्जनों द्वारा अतिशय प्रशंसित हुयी। उन्होंने दर्जनों शोधात्मक निबन्धों के माध्यम से भारतीय इतिहास के अनेक अल्पज्ञात और अज्ञात पक्षों का प्रकाशन किया। ऐसे गुरु और अभिभावक के संरक्षक में कार्य करना मेरे लिए गौरव की बात है।
प्रो० चतुर्वेदी के व्यक्तित्व का सर्वाधिक उज्ज्वल पक्ष उनका सुसंस्कृत व्यक्तित्व है। विद्या, वाणी और विनय उनके व्यक्तित्व के आभूषण हैं। वे उन थोड़े से लोगों में हैं जिनके मन, वाणी और कर्म में एकरूपता देखने को मिलती है। मैं ने उन्हें कभी सदाचार से विचलित होते नहीं देखा। शिष्यों के प्रति वे सदैव सहज स्नेहिल और उदार रहे, इसीलिए सभी शिष्य भी उनके प्रति आदर युक्त आत्मीयता का भाव रखते हैं।
मेरी यह मंगल कामना है कि गुरुवर प्रो० प्रेम सागर चतुर्वेदी शतायु हो तथा उनके यश का वितान निरन्तर विस्तृत होता रहे। दीपक जबतक जलता है प्रकाश ही बिखेरता है।
राजवन्त राव