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प्रारम्भिक बौद्ध वाङ्गमय में प्रति बिम्बित नारी जीवन
लज्जा सम्पन्न, क्रोध रहित, एवं प्रज्ञा सम्पन्न होना चाहिए, वे सदाचारिणी पति- वता ईर्ष्या रहित, कृपणता रहित एवं परिश्रमी होने से सुगति को प्राप्त होती है।
स्त्रियों द्वारा सेवा साधना व ज्ञान के जो उदाहरण बौद्ध साहित्य में प्रकाश मान है वे स्वत: ही स्त्रियों को पाप की मूर्ति निरूपित करने वाली धारणाओं को बौना सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। अतः ऐसा लगता है कि तत्कालीन समाज में नारियों की स्थिति समानता सिद्धान्त पर आधारित थी तथा बुद्ध के विचारों एवं सिद्धान्तो में नारी चिन्तन को एक नया मोड़ दिया यदि वे ऐसा नहीं करते तो थेरीगाथा जैसा गतिकाव्य निर्मित हो पाना सम्भव नहीं था ।
सन्दर्भ
ऋग्वेद, 7, 31, 508, 105
मनुस्मृति ।
अगुत्तर निकाय भाग 3 |
द स्टेटस ऑफ विमेन इन ऐन्शिस्ट इंडिया प्रो० इन्द्रा ।
विमेन अन्डर प्रिमिटव इंडिया हार्नर ।
जातक भाग 1, 2, 3, 61
संयुक्त निकाय ।
दीघ निकाय ।
थेरी गाथा ।
दिव्यावदान ।
अवदान शतक ।
विनय पिटक ।
भारत का सामाजिक इतिहास, डॉ० जयशंकर मिश्र । विनय पिटक ।
बौद्ध युगीन भारत, डॉ० सीतराम दूबे ।
प्रारम्भिक बौद्ध ग्रन्थों में समाज और संस्कृति डॉ० परमानन्द सिंह ।
189
बुद्धिस्ट इंडिया, दीज डेविडस ।
बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, डॉ० गोविन्दचन्द्र पाण्डेय ।
बौद्ध एवं जैन आगमो मे नारी, डॉ० कोमल चन्द्र जैन ।