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बौद्ध धर्म का आगमन एवं सामाजार्थिक परिवर्तन
मनउअर अली
6वीं श०ई०पू० सम्पूर्ण विश्व के लिए एक अद्भुत काल था, जब विश्व के हर भाग में बौद्धिक हलचल की शरुआत दिखाई देती है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ० राधाकृष्णन् ने भी इस बात को स्वीकार करते हुए लिखा है कि- 6वीं श०ई०पू० कई देशों में अध्यात्मिक अशान्ति तथा बौद्धिक हलचल के लिए प्रसिद्ध है। ठीक इसी क्रम में भारत में बौद्ध धर्म का उद्भव हुआ। इस धर्म के उदय ने पूर्व प्रचलित समाज के लगभग हर पक्षों पर व्यापक प्रभाव डाला, परन्तु इनमें से सामाजिक एवं आर्थिक ये दो ऐसे पक्ष हैं, जिसमें बौद्ध धर्म के उदय से आमूल-चूल परिर्वतन हुआ जिसका विवेचन करना अनिवार्य हो जाता है।
सर्वप्रथम सामाजिक पक्ष को लें तो यह पता चलता है कि बौद्ध धर्म के उदय से पूर्व का समाज वैदिक परम्पराओं पर आधारित था, जिसमें ब्राह्मण को सर्वोच्च एवं शूद्र को निम्नतर माना गया था। उत्तर वैदिक काल में ब्राह्मण की स्थिति सर्वोच्च थी वह दिव्य वर्ण का उल्लिखित है। उसकी हत्या जघन्य अपराध थी। ब्राह्मण को अध्यापन कार्य और याज्ञिक कार्य से सम्पन्न माना गया है। उसकी प्रतिष्ठा में यहाँ तक कहा गया है कि श्रुति वेद ही उसके पिता एवं पितामह हैं।
___ इसी प्रकार क्षत्रिय वर्ग राजकुल से सम्बद्ध था। वैश्य वर्ग का विकास इस युग में हो चुका था लेकिन इनका स्थान ब्राह्मणों एवं क्षत्रियों से निम्न था।