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श्रमण-संस्कृति में ही निवास करते थे। इस प्रकार अनेक वनों, उपवनों, आम्रवनों आदि के विवरण पालि त्रिपिटक में मिलते हैं। यथा-मज्झिम देश में श्रावस्ती का अन्धवन, साकेत का कण्टकीवन व अंजनवन, कपिलवस्तु व वैशाली के महावन, शाक्य जनपद के लुम्बिनी वन व आमलकी वन, कुशीनारा का शालवन, चेदि का पारिलेप्यक वन, काशी का अम्बाटक वन, कौशाम्बी, आलवी व सेतव्या के सिंसपा वन, राजगृह व किम्बिला के वेणुवन, मोरियों का पिप्पलिवन तथा वज्जियों के नागवन इत्यादि। जातक में कोसिकी नदी के किनारे तीन योजन विस्तृत एक आम्रवन का भी उल्लेख है।' दीघ निकाय की अट्ठकथा (सुमंगलविलासिनी) तथा जातकों में मध्यदेश की पूर्वी सीमा के रूप में कजंगल नामक एक धन-धान्य-परिपूर्ण (दब्बसम्भारसुलभा) कस्बे का उल्लेख है, जो सुन्दर कुश के लिए प्रसिद्ध थे। कजंगल में वेणुवन व मुखेलुवन नामक सुरम्य वन थे, जिनमें भगवान् बुद्ध ने निवास किया था। ऐतिहासिक तथ्यों से यह स्पष्ट है कि भगवान् बुद्ध ने अपनी चारिकाएँ प्रायः मध्यदेश की सीमाओं के भीतर अर्थात् 'कोसी-कुरुक्षेत्र व हिमालय-विन्ध्याचल के प्रदेश में की।
महाभिनिष्क्रमण के उपरांत गौतम बुद्ध ने प्रथमतः अनोमा नदी-तट पर पहुँच कर प्रव्रज्या ग्रहण की। अनोमा का तादात्म्य आमी नदी के साथ स्थापित किया गया है। अनोमा के पूर्वी क्षेत्र की यात्रा करते हुए वे अनूपिया के आम्रवन (अनूपियाम्बवन) पहुँचे, जहाँ इन्होंने सात दिनों तक ध्यान किया। मगध की राजधानी गिरिव्रज के पाण्डव पर्वत (पण्डव पब्बत) पर, जिसका समीकरण वर्तमान रत्नकूट या रत्नगिरि से किया गया है, गौतम बुद्ध से बिम्बिसार ने भेंट की थी। उरूवेला में छह वर्ष की कठोर तपश्चर्या के उपरान्त, एक दिन गौतम ने समीप ही प्रवाहित निरंजना नदी में स्नान किया व संयोगात् उसी रात्रि ज्ञान प्राप्ति कर बुद्ध बने। ज्ञान प्राप्ति के उपरान्त सात सप्ताह बोधिवृक्ष व कुछ अन्य वृक्षों-अजपाल नामक बरगद वृक्ष, मुलिचन्द नामक वृक्ष तथा राजायतन नामक वृक्ष के नीच समाधि सुख में बिताए। चारिका के क्रम में बुद्ध वाराणसी के निकट ऋषिपतन मृगदाव में पहुँचे।' ऋषिपतन से उरूवेला जाते हुए बुद्ध ने कप्पासिय वनखण्ड में तीस व्यक्तियों को प्रव्रजित किया, अनंतर उरूवेला से तीन साधुओं को साथ लेकर गया के गयासीस पर्वत पर गये जहाँ उन्होंने आदित्तपरियायसुत्त का उपेदश दिया। जहाँ