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श्रमण-संस्कृति प्रागैतिहासिक काल से ही किसी न किसी रूप में मानव संगीत का उपयोग भौतिक मानसिक और मनोवैज्ञानिक दुर्बलताओं से मुक्ति पाने हेतु करता आया है। सर्व प्रथम हमें संगीत की उत्पत्ति के विषय में जानना आवश्यक है। संगीत की उत्पत्ति के सिद्धांतों को समझने या जानने से पूर्व सृष्टि की उत्पत्ति के सिद्धांतों को समझना आवश्यक है। क्योंकि इन दोनों की उत्पत्ति के सिद्धांतों में गहरा संबंध है अतः सर्वप्रथम सृष्टि की उत्पत्ति के तत्वों पर विचार किया जा रहा है।
सृष्टि की उत्पत्ति के संबंध में आज जितने मत प्रचलित है उन्हें प्रमुख रूप से दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। विचार धारा की दृष्टि से उनको आस्तिक मत और विकासवादी मत कह सकते हैं। आस्तिक मतानुसार सृष्टि ईश्वर की रचना है और विकासवादी मत में जड़ प्रकृति का आकस्मिक संयोग संसार की उत्पत्ति का कारण माना जाता है। संगीत की उत्पत्ति कब और कैसे हुई, इस संबंध में आज जितने मत मतान्तर प्रचलित हैं उन पर प्रमुख रूप से इन दो विचार धाराओं का प्रभाव दिखाई देता है। ___आस्तिक मत का प्रबल समर्थक भारतीय विचारधारा है। इसका प्रमुख श्रोत वैदिक साहित्य है। वैदिक साहित्य पर आधारित सिद्धांतों के आधार पर ही, भारतीय संगीत शास्त्रों में संगीतोत्पत्ति का वर्णन किया गया है। यह वर्णन इतना स्पष्ट व्यापक और सार्थक है कि उसके अंतर्गत विकासवादी मत के प्रमुख सिद्धांत 'क्रमिक विकास' का भी तर्क संगत रूप में समावेश हो जाता
वैदिक मतानुसार सृष्टि रचयिता परब्रह्म परमेश्वर की इच्छा रूपी मायाशक्ति को प्रेरणा से संसार की उत्पत्ति हुई है। संसार की छोटी से छोटी वस्तु का भी जब कोई निर्माता अवश्य है तब इस विशाल सृष्टि का निर्माता जिसमें नियम से रात दिन, ऋतु-परिवर्तन, जन्म-मरण, सुख-दुःख की अविरलधारा प्रवाहित होती हुई दिखती है - किसी का होना तर्क संगत ही प्रतीत होता है।
भारतीय प्राचीन संगीत के विषय में सन् 1622 ई० में पंजाब में मोहन जो दड़ो और हड़प्पा में खुदाई हुई है, उसमें जो मूर्तियां प्राप्त हुई हैं, उनके द्वारा