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श्रमण-संस्कृति मनुज वस्तुवादी इतिहासा। भरल रक्त-संघर्ष-पिपासा।
सम सुख-भाग, भोग-अधिकारा।दुलर्भ सदा दलित परिवारा।। मनुष्य का वस्तुवादी इतिहास जो कि रक्त रंजित संघर्षों से भरा है उसके चेतना पर उनका वहीं वस्तुवादी अस्तित्व प्रभावित हो गया है। धन और सत्ता पर शक्तिशाली लोगों का ही अधिकार होता है। सुख, समृद्धि से हमेशा दलित एवं शोषित दूर ही रहते हैं और यही हिंसा तथा जन संघर्ष का कारण है।
जबतक न्याय, सत्य, सम्माना। हुइहें सुलभ न एक समाना। तबतक जन संघर्ष, विरोधा। रहिहें करत जगत-जन-जोधा।। जबतक श्रम-फल श्रमिक जन शोषक-वर्ग शिकार।
होत रही संघर्ष जग सदा वर्ग-आधार ।।" जिस प्रजा शक्ति के बल पर आज के नेतृत्व वर्ग शक्ति सम्पन्न होकर सुख भोग रहे हैं तथा उनकी कृपा से उनके चमचे भी सुख भोग रहे हैं। वे भी शोषण का ही दमन चक्र चला कर कामिनि कंचन के साथ भोग विलास कर रहे हैं और पैसा कमाने के लिए हर प्रकार के राक्षसी प्रवृति अपना रहे हैं।
करत कुबेर परम सम्माना। जे जग माहिं परम बलवना। कामिनि, कंचन, भोग विलासा। दमन-चक्र, शोषण इतिहासा।। करहिं जोइ शासन संसारा। रखहिं सदा सत्ता-अधिकारा। साधन अर्थ-प्राप्ति लगि जोई। करहिं विनाश दनुज जग होई।
चूसहिं रक्त जोंक जिमि देहा। स्वान समान मांस से नेहा ।।12 इस प्रकार जब अत्याचार का अति हो जाता है। तब-तब कोई न कोई क्रान्तिकारी क्रान्ति की चिंगारी फूकते हैं।
जब जब शोषित दलित समाजा। करहिं बुलंद बंद आवाजा। तब-तब युद्ध छिड़हिं घमसाना। सुलभ विश्व इतिहास प्रमाणा।।''
कवि ने युद्ध की निंदा और उसकी विभीषिका पर भी प्रहार करते हुए बताया है, युद्ध चाहे किसी भी प्रकार का क्यों न हो, चाहे सिधी युद्ध हो या शीत युद्ध दोनों ही दुःखदायी होता है। युद्ध में जहाँ धन जन की हानि होती है, वहीं शीत युद्ध से संसार का व्यापार प्रभावित होता है। और इस सभी के मूल में मानव का भौतिक स्वार्थ, शक्ति और प्रभुसत्ता की ही तृष्णा है।