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श्रमण-संस्कृति भाजा चैत्यगृह अन्तः भाग में 55 फीट लम्बा एवं 26 फीट चौड़ा है, स्तम्भों एवं भित्ति के मध्य 2 1/2 फीट का प्रदक्षिणापथ है, गज पृष्ठाकार छत 29 फीट ऊंची है तथा मण्डप में 11 फीट ऊंचे स्तम्भ है, मण्डप का अंतिम सिरा अर्द्ध चन्द्राकार है, मण्डप तथा स्तूप को घेरते हुए 27 सोद अष्टांशिक स्तम्भ बने हैं। स्तम्भ अपने ब्रह्म सूत्र से भीतरी ओर 5 इंच झुके हुए हैं। स्तूप पूर्णतः अलंकरण विहीन है, किन्तु यह सम्भव है कि प्रारम्भ में ये काष्ठ अलंकरणों से अलंकृत किया गया हो, भाजा चैत्यगृह का एक विलक्षण बात यह है कि इसके मुख्य मण्डप में पाषाण और काष्ठ शिल्प का परस्पर संयोग था जो अब नष्ट हो चुका है।
कोण्डाने चैत्यगृह में उसने मुखमण्डप से काष्ठ स्तम्भों को हटाकर पाषाण स्तम्भों को उत्कीर्ण किया। यह चैत्यगृह 66 फीट लम्बा 26 1/2 फीट चौड़ा तथा 28 फीट ऊंचा है। इसका निर्माण भी भाजा शैली में ही हुआ है।
पीतल खोरा चैत्यगृह कोण्डाने का विकसित रूप है। यह 86 फीट लम्बा 35 फीट चौड़ा तथा 31 फीट ऊंचा है, इसमें 37 अष्टांसिक स्तम्भ थे, जो मण्डप
और प्रदक्षिणापथ को बांटते थे, उनमें से केवल 12 अपने पूर्व रूप में बिना टूट-फूट के बचे हैं। उन पर पांचवीं शदी के कुछ चित्र एवं दो लेख हैं, जिसके अनुसार प्रतिष्ठान के श्रेष्ठियों ने गुफाएं बनवाई हैं, इसमें खम्भों का झुकाव भाजा की भांति भीतरी ओर है तथा छत के नीचे जो काष्ठ धनियां बनती थीं उनके स्थान पर पाषाण धन्नियों को तराशा गया है।
___ अजन्ता का चैत्यगृह वास्तु-संबंधी इस आन्दोलन के उच्च शिखर पर है। इसमें चित्र, शिल्प और वास्तु विद्या सम्बन्धी दीर्घकालीन प्रयत्न व्यक्त हुआ है। यह (गुफा सं० 10) 96 फीट 6 इंच लम्बा, 41 फीट 3 इंच चौड़ा तथा 36 फीट ऊंचा है। मण्डप तथा प्रदक्षिणापथ के बीच 59 स्तम्भों की पंक्ति है। खम्भों के बीच की डण्डी चौकोर और कुछ भीतरी झुकाव लिए हुए है। इसमें प्रस्तर धनियां स्तम्भों पर टिकी काटी गई हैं। ऊपर सम्भवतः काष्ठ धनियां रहीं होंगी क्योंकि भित्ति में छिद्र कटे हैं। गर्भगृह में उत्कीर्ण स्तूप दो भागों में है - एक गोल अधिष्ठान भाग, और दूसरा उसके ऊपर लम्बा अण्डभाग जिससे स्तूप का कुछ विकास सूचित होता है, चैत्यगृह गुफा सं० 9, 10 से छोटी है, जिसके मुख भाग में किसी प्रकार का काष्ठशिल्प नहीं पाया जाता है।