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15 बौद्ध परिक्षेत्र में शैलकृत वास्तु कला
राम गोपाल शुक्ल
बुद्ध धर्म के अभ्युदय के साथ बौद्ध सम्प्रदाय के सम्मुख विभिन्न समस्याएं आयी जिनका समाधान बुद्ध ने स्वयं किया। धर्म कार्य के विकास के साथ भिक्षुओं की संख्या प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी अतः यह भी समस्या था कि भिक्षुगण का निवास कहाँ स्थिर किया जाय? चुल्लवग्ग में वर्णन आता है कि राजगृह के नगर श्रेष्ठी ने भगवान से प्रार्थना की कि भिक्षुओं के लिए निवास अथवा निर्मित स्थान में रहने की अनुमति मिलनी चाहिये, अन्तोगत्वा परिव्राजक की गतिशीलता का ध्यान रखकर बुद्ध ने शिष्यों को निर्मित स्थान में रहने की अनुमति दे दी, अतः धनी सेठ लोग बौद्ध भिक्षुओं को निवास बनवाकर दान देने लगे। जिसमें पर्वत की गुफा भी शामिल है। महावग्ग में बिहार का अनगिनत उल्लेख मिलता है। निवास के लिए नगर के कोलाहल से दूर शांत वातावरण तथा तपस्या के योग्य पर्वत से सम्बन्धित गुहा ही सब कठिनाइयों का अन्तिम हल माना गया। नगर के समीप पर्वत खोदकर गुहा निर्माण का कार्य शुरू किया गया, परन्तु पूर्वी भारत के प्रस्तर कमजोर तथा मिट्टीदार थे। इस कारण वहाँ गुहा का स्थानीय रूप नहीं हो सका। ठोस पर्वत को ढूंढने का श्रेय मौर्य सम्राट अशोक को गया। अत: अशोक ने बिहार की बराबर पर्वत श्रेणी में गुफाएं में उत्कीर्ण कराने की परिपाटी का आरम्भ किया जिसे अशोक के पौत्र दशरथ ने इस वास्तु शैली को आगे बढ़ाया और नागार्जुनी पहाड़ी में वैसी ही गुफाएं खुदवाकर उन्हें आजीवक भिक्षुओं को दान दिया। अशोक के समय ही बौद्ध धर्म का पश्चिम भारत में गिरिनार पहाड़ी (रैवतक पर्वत) सोपरा, सौराष्ट्र के जूनागढ़ तक हुआ।' सौराष्ट्र के मध्य जूनागढ़ में पूर्ववर्ती