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श्रमण-संस्कृति
सेवन" और संगीत नृत्य का भरपूर रसास्वादन करना था । प्रत्येक वर्ष यह उत्सव विशेष रूप से उमंग के साथ मनाया जाता था। इस दिन तपस्वी भी सुरपान का सेवन करते थे 2° किन्तु यह कथन मान्य नहीं है। वहीं राजा एवं प्रजा भी समान रूप से मद्यपान करते थे ।" मद्यपान के पश्चात कुछ घटनाएं भी घटित हो जाती थीं। इन पर्वों के अतिरिक्त संगीत, नाटक, नृत्य, समूह गान एवं नर्तक, लाठीयुद्ध, मल्लयुद्ध, हस्तियुद्ध, अश्वयुद्ध, महिषयुद्ध, वृषभयुद्ध, मुर्गों की लड़ाई का आयोजन कभी-कभी राजदरबार के प्रांगण में भी होता
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इस प्रकार वर्ष भर किसी न किसी पर्व, उत्सव का आयोजन होता था । वर्णगत एवं स्तरगत भेदभाव से दूर, समाज के समस्त नागरिक अद्भुत उत्साह एवं उल्लास के साथ इन जनप्रिय पर्वों में भाग लेते थे। राजा एवं गरीब, अमीर एवं साधारण जन, गृहस्थ एवं सन्यासी, बच्चे एवं वृद्ध, स्त्री एवं पुरुष, समस्त लोक इन महोत्सव के शुभ अवसर पर पुलकित एवं मुखरित हो उठते थे ।
संदर्भ
1. पाण्डेय, विमल चन्द्र, भाग 1, 1996, इलाहाबाद चतुर्थ संशोधित संस्करण, प्रकाशक, सेन्ट्रल पब्लिशिंग हाउस, प्राचीन भारत का राजनीतिक तथा सांस्कृतिक इतिहास, पृ० 254
2. पाण्डेय, विमल चन्द्र, भाग 1, 1996, इलाहाबाद चतुर्थ संशोधित संस्करण, प्रकाशक, सेन्ट्रल पब्लिशिंग हाउस, प्राचीन भारत का राजनीतिक तथा सांस्कृतिक इतिहास, पृ०
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3. श्रीवास्तव, कृष्णचन्द्र, प्रथम आवृत्त 1991, इलाहाबाद, प्रकाशक यूनाइटेड बुक डिपो, प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, पृ० 41
4. ऋग्वेद संहिता, 1977, बान, सम्पादक, थॉमस ऑफ्रेख्ट, 1.28.5
5. ऋग्वेद संहिता, 1977, बान, सम्पादक, थॉमस ऑफ्रेख्ट, 2.43 3 6. ऋग्वेद संहिता 1977, बान, सम्पादक, थॉमस ऑफ्रेख्ट, 10.32.4 7. ऋग्वेद संहिता, 1977, बान, सम्पादक, थॉमस ऑफ्रेख्ट, 10.135.7 8. पाणिनि कृत अष्टाध्यायी, 1929, निर्णय सागर प्रेस, 3.3.37 9. पाणिनि कृत अष्टाध्यायी, 1929, निर्णय सागर प्रेस, 4.4.19 10. पाणिनि कृत अष्टाध्यायी, 1929, निर्णय सागर प्रेस, 3.3.96 11. पाणिनि कृत अष्टाध्यायी, 1929, निर्णय सागर प्रेस, 3.1.145-146