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जातक कथाओं में महोत्सव में दुन्दुभी' (अवनद्ध वाद्य), कर्करी (तन्तु वाद्य), वण, नाड़ी' (सुशिर वाद्य) आदि प्रमुख थे। वैदिक काल की भांति पाणिनी काल में भी द्यूत' होता था। यह परसों (अक्षों) खेला जाता था। एक निश्चित स्थान पर विभिन्न प्रकार के मनोरंजन का आयोजन होता था जिन्हें उत्सव कहा जाता था। अशोक के स्तम्भलेखों और महाभारत में उसे 'समाज' कहा गया है। मनोरंजन हेतु संगीत-नृत्य का आयोजन होता था।"
बौद्ध साहित्य के अन्तर्गत कौमुदी महोत्सव के शुभावसर पर सम्पूर्ण नगर भव्यता के साथ सजाया जाता था। न केवल नगर ही बल्कि नागरिक भी विशिष्ट रूप से सजते थे। इस अवसर पर सम्पूर्ण नगर में अवकाश दिवस के रूप में मनाया जाता था। समस्त नगर के लोग मनोरंजन के विभिन्न साधनों से आमोद-प्रमोद करते थे तथा स्वच्छन्द होकर घूमते थे। जिसकी पुष्टि पालि साक्ष्य से होती है। जहाँ स्त्रियां अपने प्रेमियों के गले में बाहें डालकर घूमना पसन्द करती थीं। वहीं साल मंजिका पर्व के अन्तर्गत एक निश्चित तारीख को शालवन में मनाया जाता था। इस शुभावसर पर शालवन के प्रत्येक वृक्ष शाल-पुष्पों से घिर जाते थे। पुरुष, स्त्री, बच्चे सभी उन पुष्पों को तोड़कर विशेष आनन्द की अनुभूति प्राप्त करते थे। हस्तिमंगलोत्सव समाज के संभ्रान्त वर्ग तक ही सीति था। यह अभिजात वर्ग का वैभवपूर्ण पर्व समझा जाता था।” राजा की उपस्थिति इस समारोह का शुभारम्भ एवं समापन वेदज्ञ ब्राह्मण करता था। यह समारोह राजमहल के प्रांगण की शोभा बढ़ाता था। इस पर्व के अवसर पर राजदरबार विशेष रूप से अलंकृत करके उसमें स्वर्ग परिष्टोम ध्वज एवं जाल से सुशोभित हाथियों को पंक्ति में खड़ा किया जाता था।
गिरज्ज समज्ज धार्मिक उत्सव था। इस उत्सव में राजपरिवार के लोग भी शामिल होते थे। इस पहाड़ी पर देवता का निवास समझा जाता था, उनके सम्मुख नृत्य संगीत आदि का आयोजन होता था। यह पर्व राजगृह की पहाड़ी पर किया जाता था। कर्षणोत्सव पर्व अन्नपूर्णा माता को प्रसन्न करने के निमित्त मनाया जाता था। स्वामी द्वारा हल चलाने की रस्म पूरी होने पर कृषक कृषि कर्म प्रारम्भ करते थे। सुरा नक्षत्र वर्ष की मुख्य विशेषता मद्यमांस का