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________________ 13 भारतीय संस्कृति पर बौद्ध परम्परा का प्रभाव आशाराम संस्कृति मानव को मानव बना देने वाले कतिपय विशिष्ट तत्वों में अन्यतम् है। वे सारी अभिव्यक्तियां ही संस्कृति हैं जो मनुष्य को मानसिक आत्मिक एवं बौद्धिक विशिष्टता प्रदान करती हैं। किन्तु यह संस्कृति किसी एक व्यक्ति के कुछ समय के अथवा सम्पूर्ण जीवन के कार्यों से निर्मित नहीं होती । यह संस्कृति तो किसी भी देश के ज्ञात अथवा अज्ञात असंख्य व्यक्तियों के दीर्घकालीन एवं कष्ट साध्य प्रयत्नों के परिणाम से पल्लवित पुष्पित होती है। देश की परम्परागत सम्पूर्ण मानसिक निधि ही संस्कृति शब्द में समाहित हो जाती है। समय की निर्वाध गति में सभी अपनी-अपनी सामर्थ्य और योग्यता के अनुसार अपने देश की संस्कृति निर्माण में योगदान देते जाते हैं। श्री हरिदत्त वेदालंकार ने संस्कृति निर्माण की इस प्रक्रिया के लिए अत्यन्त सुन्दर उपमान प्रस्तुत किया है। संस्कृति की तुलना आस्ट्रेलिया के निकट समुद्र में पायी जाने वाली मूंगे की भीमकाय चट्टानों से की जा सकती है। मुंगे के असंख्य कीडे अपने छोटे घर बनाकर समाप्त हो गये, फिर नये कीड़ों ने घर बनाये उनका भी अन्त हो गया। इसके बाद उनकी अगली पीढ़ी ने भी वही किया, और यह क्रम हजारों वर्ष तक निरन्तर चलता रहा। आज उन सब मूंगों के नन्हें-नन्हें घरों ने परस्पर जुड़ते हुए विशाल चट्टानों का रूप धारण कर लिया है। संस्कृति का भी इसी प्रकार धीरे-धीरे निर्माण होता है और उनके निर्माण में हजारों वर्ष लगते हैं। मनुष्य विभिन्न स्थानों पर रहते हुए विशेष प्रकार के सामाजिक वातावरण,
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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