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महिलाओं के प्रति बुद्ध का दृष्टिकोण
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तरह-तरह से तिरस्कृत किया जाता था । भिक्षुणियों द्वारा छोटी सी गलती हो जाने पर भी लोग उन्हें 'सिर मुंडी वेश्याएँ' कहकर तिरस्कृत करते थे 35 जबकि भिक्षुओं द्वारा गलती किये जाने के बावजूद उनके लिये इतने अपमानजनक शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता था । यही कारण था कि भिक्षुओं की अपेक्षा भिक्षुणियों के लिये ज्यादा कड़े नियमों का निर्माण किया गया। यही कारण था कि बौद्ध संघ जैसे-जैसे विकसित होता गया उसने अपने चरित्र को बाहरी समाज के अनुसार ढालना शुरू कर दिया। इस नये हो रहे परिवर्तन का अर्थ यह था कि महिलायें धर्म को पूर्णकालिक विषय के रूप में तो स्वीकार कर सकती हैं लेकिन यह कार्य एक ऐसे नियंत्रित संस्थागत ढांचे के भीतर होगा जो पुरुष प्रधानता और महिला अधीनीकरण को पारम्परिक रूप से स्वीकृत सामाजिक मानकों द्वारा सुरक्षित और सशक्त बनाता हो ।'
ऐसा माना जा सकता है कि प्रथम भिक्षुणी महाप्रजापति गौतमी तथा उन पर लगाए गए 8 प्रतिबन्ध भी काल्पनिक ही हैं । यहाँ यह तथ्य उल्लेखनीय है कि मजाप्रजापति गौतमी ने अपने पति की मृत्यु के बाद प्रव्रज्या प्राप्त की थी, उस समय तक अनेक महिलायें बुद्ध से उपसम्पदा प्राप्त कर चुकी थीं । आइ० to हार्नर का भी यह मानना है कि बुद्ध द्वारा 500 वर्ष बाद बौद्ध धर्म के पतन की भविष्यवाणी करना बाद के भिक्षुओं द्वारा कल्पित कहानी ही मानी जा सकती है। 36
कुछ आलोचकों का यह भी कहना है कि बुद्ध ने अपनी पत्नी का परित्याग किया था । यह परित्याग उनके स्त्री विरोधी दृष्टिकोण को ही प्रदर्शित करता है। लेकिन बुद्ध की इस तरह आलोचना करना ठीक नहीं है क्योंकि जब उन्होंने घर का त्याग किया था, उस समय वे एक साधारण मनुष्य थे। ज्ञान की प्राप्ति के लिए उन्होंने प्रारम्भ में ब्राह्मणवाद की परम्पराओं का अनुसरण करते हुए सांसारिक जीवन का परित्याग किया था। इस अवधि में आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए तीन चीजों का परित्याग करना अनिवार्य माना जाता था । ये वस्तुएं थीं- धन, स्त्री और प्रतिष्ठा । 7 अतः इस आधारपर बुद्ध को स्त्री विरोधी नहीं माना जा सकता है।
थेरीगाथा, बौद्ध गीत संग्रह है जिसकी रचना लगभग सौ बौद्ध भिक्षुणियों ने मिलकर किया था। बौद्ध ग्रन्थ त्रिपिटक जो पालि भाषा में है, कई स्थानों पर