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श्रमण-संस्कृति
धर्म की आयु आधी रह जाएगी। "यदि महिलाओं को गृहस्थी जीवन छोड़कर दीक्षा प्राप्त करने की आज्ञा न दी जाती तो बौद्ध धर्म एक हजार वर्ष तक जीवित रहता, लेकिन अब क्योंकि महिलाओं ने दीक्षा प्राप्त कर ली है, बौद्ध धर्म जीवन अधिक समय तक नहीं चलेगा केवल 500 वर्ष। "30 इस आधार पर यह कहना ज्यादा युक्ति संगत होगा कि बुद्ध, जिनके दृष्टिकोण का आधार ही सामाजिक समानता थी, वे ऐसे विचार क्यों व्यक्त करेंगे। ऐसा प्रतीत होता है कि बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद इस प्रसंग को एक क्षेपक के रूप में जोड़ा
गया।
बौद्ध ग्रन्थों में बार-बार विचारों में जो भिन्नता दिखाई देती है उसे ठीक ढंग से समझने के लिए हमें उस विशेष सांस्थानिक या बौद्धिक संदर्भ की पहचान कर लेनी चाहिये जिसमें से इस प्रकार के प्रत्येक विचार का उद्भव हुआ है। केट ब्लैकस्टन ने लिखा है कि बौद्ध धर्म में स्त्रियों के प्रति द्वेषभाव इस तथ्य की उपज था कि महिलाओं की दीक्षा को धर्म और विनय के लिए एक गम्भीर और अपरिहार्य खतरे के रूप में देखा गया । 1 डायना पॉल ने बौद्ध ग्रन्थों में वर्णित स्त्रियों के द्वेषभाव को उस भारतीय संदर्भ में देखा है जिसमें उसका विकास हुआ था। 2 जैनिस विल्लिस ने लिखा है कि आज हम पालि ग्रन्थों में तथ्यों से महायान ग्रंथों में वर्णित तथ्यों पर ध्यान देते हैं तो यह पाते हैं। कि इनमें महिलाओं के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया गया है। 3
ऐसा प्रतीत होता है कि बाद में (महापरिनिर्वाणोत्तर) काल में बौद्ध भिक्षुओं ने यह अनुभव किया हो कि पुरुष प्रधान प्राचीन भारतीय समाज में उनकी शिष्यायें निरन्तर प्रताड़ित या अपमानित की जायेंगी या वे पुरुष हिंसा का शिकार बनने लगेंगी। यह भी एक कारण रहा होगा कि बौद्ध संघ में स्त्रियों या भिक्षुणियों पर कई प्रतिबंध लगाये गये थे । उस समय बौद्ध विहार मानव बस्तियों के बाहर बनाये जाते थे। ऐसी स्थिति में बौद्ध भिक्षुणियों को यौन प्रताड़ना की सम्भावना बनी रहती होगी। एक दृष्टांत के द्वारा इसे सिद्ध किया जा सकता है। 'एक बार कई भिक्षुणियां कोशल प्रदेश से श्रावस्ती जा रही थी । एक भिक्षुणी मल-मूत्र त्यागना चाहती थी, अतः वह अकेले ही पीछे ठहर गई । उस भिक्षुणी को अकेले देखकर लोगों ने उसके साथ यौन सम्बन्ध स्थापित कर लिया 14 इस बात के भी प्रमाण मिलते हैं कि उस समय भिक्षुणियों को