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महिलाओं के प्रति बुद्ध का दृष्टिकोण
नन्दन कुमार एवं पवन कुमार
प्राचीन भारत में बौद्ध धर्म का उदय भारतीय समाज में परिवर्तनवादी सोच को प्रदर्शित करता है। इस सोच का सम्बन्ध उन समस्त बातों से था जिनसे प्राचीन भारतीय समाज का शोषण हो रहा था। शोषण की इन प्रवृत्तियों को अस्पृश्यता, कर्मकाण्ड, सामाजिक, असमानता और स्त्रियों की हीन अवस्था (दुर्दशा) जैसी बातों में देखा जा सकता है। प्रस्तुत आलेख बौद्ध धर्म में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण और सोच का समीक्षात्मक प्रयास प्रस्तुत करता है । यह प्रयास निम्न समस्याओं और परिस्थितियों पर केन्द्रित है -
जिस समय भारतीय समाज में बुद्ध का प्रादुर्भाव हुआ, उस समय समाज में पितृसत्तात्मक तत्व व्यापक पैमाने पर विद्यमान थे। उस समय लड़की का जन्म दुःख का कारण माना जाता था तथा स्त्रियों को जुए और शतरंज के साथ तीन प्रमुख बुराईयों के रूप में माना जाता था । उस समय ऐसी महिला को आदर्श पत्नी के रूप में स्वीकार किया जाता था जो पति को देवता के रूप में स्वीकार करती थी ( पति देवता ) और उसके चरणों में गिरकर (पादपरिचारिका) 4 स्वयं को भाग्यवान मानती थी। उस समय महिलाओं को वस्तुओं की तरह बेचा भी जाता था । ये उदाहरण इस बात को स्पष्ट कर देते हैं कि महिलाओं की सामाजिक स्थिति उस समय अच्छी नहीं थी । यहाँ यह प्रश्न विचारणीय है कि क्या बौद्ध धर्म और दृष्टिकोण पर उपरोक्त ब्राह्मणवादी विचारधारा का प्रभाव पड़ा था और यदि प्रभाव पड़ा भी तो इसके क्या परिणाम सामने आये।