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________________ 62 राजस्थानी जैन साहित्य ओर कुशललाभ ने संकेत करते हुए लिखा है "संन्यासी काशी तप साधतो, पंचाग्नि परजाळे दीठो श्री पारस कुमारे पन्नग, अधबळतो ते टाळे संभळाव्यों श्री नवकार स्वयं मुख इंद्र भुवन अवतार ।।' कीर्तिमेरू, जिनप्रभ सूरि, विनय समुद्र, हेम, लधराज, कान्ह कवि आदि की रचनाओं में पद्मावती संबंधी इस कथा की ओर संकेत मिलते हैं। इसी प्रकार की घटनाएं अंबा, सरस्वती, महाभाई, शारदा आदि जैन देवियों के प्रति भी मिलती है। ___सभी जैन कवियों ने अपनी उपास्या देवी के रौद्र, भयानक, कल्याणकारी रूप के साथ ही उसके शृंगारिक रूप का अति मनोरम चित्रण किया है। वस्तुतः यही रागात्मकता है, जो भक्ति का मूल आधार है । कीर्तिमेरू, सुधारू, कुशललाभ, संघविजय, हेम, कान्ह आदि देवीभक्त कवियों द्वारा चित्रित देवी-सौंदर्य उल्लेखनीय हैं। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं सुगुण मंदिर, अतिहिं सुंदर, सिर ससिहर धारिणी । कानि कुंडल, सून्मण्डल, लील गज गति गामिणी ।। रूप रंभ कि वयण चंद्र कि, नयण पंकज हारिणी। नयणि अंजन, जनह रंजन, भवह भंजण भामिणी ।" (कीर्तिमेरू-अंबिका छंद) "नासा अणीआली अधर प्रवाली, झांक जमाखी वेणवती जत मीन कपोळी, सेथ रोली, आउ, अमोली, सरधरणी तिलकेश्वर भाळी, पीअले आली, भूषण भाली, भागवती कर भुजदंडी, मंडित चंडी, गंभी ज डंडी नाभ भरी उर उन्नत सारा, कंचुक धारा, विलसत हारा, कृस उदरी कटि मेषल करणी, हरकिछ हरणी, झंझर चरणी हंस पदा ।। (कवि हेम-पद्मावती छंद, छंद4-5) इसी सौन्दर्यमयी देवी का रौद्र रूप प्रस्तुत है, जहां महामाई दुर्गा महिषासुर मर्दन के लिये तत्पर है “कालिका द्रूअ ब्रह्म मंड कीधा, रोहिर भषण जोगणी रिधा। गड़गड़इ सिंधु पूरंति ग्राह, अरिही देव अरि दलण आह ।। 1. प्रताप शोध प्रतिष्ठान बी.एन. कालेज (उदयपुर ग्रथांक 75-नवकार छंद, छंद 9)
SR No.022847
Book TitleRajasthani Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmohanswarup Mathur
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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