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________________ राजस्थानी जैन साहित्य 1. अगड़दत्त का प्रदेश-गमन । 2. मदनमंजरी एवं अगड़दत्त के विवाह का प्रसंग । 3. अटवी में भुजंगम चोर को मारकर पुनः चम्पानगरी को नहीं लौटना । 4. अपने पिता के हत्यारे अभंगसेन (सुभट) का वध । भीमसेन द्वारा अगड़दत्त को पुनः वसन्तपुर बुलवाना । नगर की सीमा पर माता-पिता द्वारा उसका स्वागत करना । मदनमंजरी के साथ अगडदत्त का मार्ग में ही रुक जाना। 6. नायिका एवं सरस्वती का नख-सिख वर्णन । 7. पात्रों एवं स्थानों के नामों का अन्तर । सूक्ष्म दृष्टि से यदि विचार किया जाय तो नामों का यह अन्तर विभिन्न कथा-रचयिताओं के बुद्धि-कोशल का चमत्कार प्रदर्शन मात्र है। धनंजय का अर्थ ही भुजंगम होता है और अन्य अर्थ अर्जुन भी । अतः धनंजय, भुजंगम अथवा अर्जुन नामों में कोई अन्तर नहीं। केवल पाठकों (श्रोताओं) को समझाने मात्र के लिये ऐसा किया गया है । मदनमंजरी, विषय और वीरमती भी एक ही अर्थ के बोधक नाम हैं।
SR No.022847
Book TitleRajasthani Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmohanswarup Mathur
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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