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________________ 96 राजस्थानी जैन साहित्य 7. विद्याधर-मदनमंजरी प्रसंग ___ कुशललाभ ने स्वकृत “अगड़दत्त रास” में बसन्तपुर की सीमा पर मदनमंजरी को पर-पुरुष के साथ रमण करते हुए बताया है, जिसे देखकर आकाश में उड़ता हुआ विद्याधर उसकी हत्या करने की सोचता है। किन्तु तभी मदनमंजरी को सर्प डस लेता है और अगड़दत्त भी उसके साथ विलाप करने लगता है। अगड़दत्त के करुणार्द्र निवेदन पर विद्याधर मदनमंजरी को पुनर्जीवित करके नारी आचरण का संकेत करता है । वसुदेव हिण्डी और उत्तराध्ययन वृत्ति में वर्णित कथाओं में विद्याधरयुगल का उल्लेख है तो भीम के अगड़दन रास में एक ही विद्याधर का उल्लेख है, जो अगड़दत्त को सयल राजा और कामुक मोह के दृष्टान्त से प्रतिबोधित करता है । इस प्रकार कुशललाभ ने नारी जाति की कुटिलता को मानव जाति के माध्यम से ही स्पष्ट किया है, जबकि भीम ने इस प्रवृत्ति को जन्तु-समाज में भी व्याप्त बताकर इसका सामान्यीकरण किया है। 8. अगड़दत्त का दीक्षित होना कुशललाभ द्वारा वर्णित कथा में अगड़दत्त देवस्थान में मिले चोरों के नायक से अपना चरित्र सुनकर संसार की असारता का ज्ञान प्राप्त कर दीक्षित होता है, जबकि वसुदेव हिण्डी में अगड़दत्त दीक्षित होकर अपने चरित्र का स्वयं उद्घाटन करता है । 1. तेह तणी नारी छहजेह, अन्य पुरुष सिड लुबधी तेह । ते विद्याधरि जाणी बात, करवा मांडिउ नारी घात ।। -भण्डारकर प्राच्यविद्या मंदिर, पूना, ग्रं.605 2. वही, चौ. 257-259 3. डॉ. जे. सी. जैन, प्राकृत जैन कथा साहित्य, पृ. 169 4. वही, पृ. 170 वलीय विद्याधर भणई, तू सांभली भूपाल। कहु कथा कामिणी तणी, सुषि सुन्दर सुविसाल ॥350 ।। पाछलि एक राजा हतउ सयल हतउ तस नाम । राजा रुधि होती घणी,करइ राज अभिराम ।।351 ।। गोर सर्पनह सापिणी,क्रीड़ा करइ मनि रंगि। ते देषी नृप वितवह, हीयड़ करह विचार । सापिणी पर नरस्युं रमइ धिग-धिग ए संसार ।।352 ॥ --राज.प्रा. वि.प्र.,जोधपुर, ग्रं.27233
SR No.022847
Book TitleRajasthani Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmohanswarup Mathur
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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