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जैन धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की प्राचीनता * 83
बचाया। कमठ भी थककर चला गया। तब पार्श्वनाथ जी को द्वितीय शुक्लध्यान के द्वारा चैत्र कृष्ण त्रयोदशी के दिन प्रातःकाल के समय विशाखा नक्षत्र में केवलज्ञान
हुआ।57
यहाँ यह उल्लेखनीय है, कि पार्श्वनाथजी ने नाग युगल की रक्षा की, जिसके फलस्वरुप उन्होंने उनकी रक्षा की। इसके अतिरिक्त आज तक नाग जाति उनकी पूजा करती है, जो आज भी असम की पहाड़ियों में रहते हैं।58
धर्म-परिवार : भगवान पार्श्वनाथ के समवसरण में स्वयंभू आदि दश गणधर थे, तीन सौ पचास मुनि पूर्वधर थे, दस हजार नौ सौ शिक्षक थे, एक हजार चार सौ अवधिज्ञानी थे, एक हजार केवलज्ञानी थे, और छह सौ वादी थे। इस प्रकार सब मिलाकर सोलह हजार मुनि थे। सुलोचना आदि छत्तीस हजार आर्यिकाएँ थीं। एक लाख श्रावक और तीन लाख श्राविकाएँ थीं। असंख्यात देव-देवियाँ और संख्यात तिर्यंञ्च थे। इस प्रकार की बारह प्रकार की धर्मसभाओं को प्रभु पार्श्वनाथ जी ने पांच माह कम सत्तर वर्ष तक विचरण करते हुए प्रतिबोधित किया।
निर्वाण : भगवान पार्श्वनाथ जी की आयु का एक माह शेष रहा तब वे सम्मेद शिखर पर चले गये। वहाँ छत्तीस मुनियों के साथ प्रतिमा योग धारण करके विराजमान हो गए। श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन प्रातःकाल के समय विशाखा नक्षत्र में प्रभु मोक्षगामी हुए। तब इन्द्रों ने आकर पंचम मोक्ष कल्याणक की पूजा की। 24. महावीर स्वामी :
___ वर्तमान अवसर्पिणी काल में भरतक्षेत्र के चौबीसवें तथा अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर हुए। भगवान महावीर प्रामाणिक रूप से एक इतिहास पुरुष माने गये हैं। उनका समय ई. पू. छठी शताब्दी माना गया है। यह काल संपूर्ण विश्व में सामाजिक सुधार एवं धार्मिक उत्क्रान्ति का काल था। ई. पू. छठी शताब्दी में भारत में महावीर एवं बुद्ध ने वैदिक हिंसा व आडम्बर पूर्ण क्रियाकाण्डों के विरोध में अहिंसा का उपदेश देकर धार्मिक एवं सांस्कृतिक क्रांति का सूत्रपात किया। उसी काल में चीन में लाओत्से और कन्फ्यूसियस यूनान में पाइथागोरस, अफलातून और सुकरात, ईरान में जरथुष्ट, फिलीस्तीन में जिरेमियाँ और इर्जाकेल आदि महापुरुषों ने अपने-अपने क्षेत्र में सांस्कृतिक एवं धार्मिक क्रान्ति का सूत्रपात किया था। इन सभी युगपुरुषों में सर्वाधिक सशक्त, करुणामय, धर्ममय, मानवता के नियमों से विश्वकल्याण और विश्व प्रेम का जो आदर्श उपस्थित किया, 'जिओ और जीने दो' का नारा दिया, वह अनुपम एवं अद्वितीय है। महावीर के जीवन-दर्शन सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक आदर्श हैं।
___ वर्तमान काल में उपलब्ध समस्त जैन आगम, सूत्र, सिद्धान्त एवं शास्त्र भगवान महावीर द्वारा उपदेशित एवं भाषित तत्वों के आधार पर ही गणधरों एवं बाद के आचार्यों द्वारा लिपिबद्ध किये गये हैं। यद्यपि यह उल्लेख मिलता है, कि चतुर्दश पूर्व