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354 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
वेद है। नारकी जीव तथा समूर्च्छन जन्म वाले जीव नपुंसक वेद वाले होते हैं। देवों में स्त्री तथा पुरुष वेद ही होता है, नपुंसक वेद नहीं होता है। शेष समस्त संसारी प्राणी तीनों वेदों वाले हो सकते हैं। समस्त संसारी प्राणीयों में इन तीनों वेद में से एक वेद अवश्य होता है। केवल सिद्ध जीव ही वेद-रहित होते हैं।
____4. जन्म : जन्म की अपेक्षा से भी जीव तीन प्रकार का होता है। सभी संसारी जीवों का जन्म होता है, ये जन्म तीन प्रकार से होते हैं- 1. समूर्छन, 2. गर्भ तथा 3. उपपात द्वारा।
1. गर्भ : गर्भ द्वारा जीव तीन प्रकार से जन्म लेते हैं :- जरायुज, अण्डज तथा
पोतज।
1. जरायुज : गर्भ वेष्टन के साथ जो प्राणी उत्पन्न होते हैं, वे जरायुज
कहलाते हैं, जैसे मनुष्य, गाय आदि। 2. अण्डज : अण्डे से पैदा होने वाले जीव अण्डज कहलाते हैं। जैसे सांप,
मोर, चिड़िया आदि। 3. पोतज : जो किसी प्रकार के आवरण से वेष्टित न होकर ही जन्म लेते हैं,
वे पोतज जीव कहलाते हैं। जैसे हाथी, नेवला, शशक, चूहा आदि।
2. उपपात जन्म : स्वर्ग तथा नरक में देव तथा नारकियों के जन्म के लिए नियत स्थान विशेष उपपात कहा जाता है। देव तथा नारकियों का उपपात जन्म होता है। क्योंकि वे उपपात क्षेत्र में स्थित वैक्रिय पुद्गलों को शरीर के लिए ग्रहण करते हैं। इन दो जन्मों से अतिरिक्त जन्म वाले समस्त प्राणियों का जन्म समूर्छन जन्म कहलाता
5. भाव : भाव की अपेक्षा से जीव पाँच प्रकार के होते हैं। आत्मा के सभी पर्याय किसी एक भी अवस्था वाले नहीं पाये जाते हैं। कुछ पर्याय किसी एक अवस्था में हैं, तो दूसरे कुछ पर्याय किसी दूसरी अवस्था में। पर्यायों की वे भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ भाव कहलाती हैं। आत्मा के पर्याय अधिक से अधिक पाँच भाव वाले होते हैं, जो निम्न लिखित हैं - 1. औपशमिक, 2. क्षायिक, 3. क्षयोपशमिक, 4. औयिक व 5. पारिणामिक।
1. औपशमिक भाव : औपशमिक भाव वह है, जो कर्म के उपशम से पैदा __ होता है। उपशम एक प्रकार की आत्म शुद्धि है, जो कर्म का उदय बिल्कुल रुक जाने पर वैसी ही होती है, जैसी कचरा नीचे बैठ जाने पर
जल में स्वच्छता होती है। 2. क्षायिक भाव : क्षायिक भाव वह है, जो कर्म के क्षय से उत्पन्न होता है,
क्षय आत्मा की वह परम विशुद्धि है, जो कर्म का सम्बन्ध पूर्ण रूप से छूट