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जैन दार्शनिक सिद्धान्त * 245
12. विरुषरुवे फासे पडिसे वेदेइ, आयारो, पृष्ठ 6 13. उत्तराध्ययन सूत्र, 3/6 14. वही,4/4 15. स्थानांग सूत्र, 1/77 16. वही, 1/4/98 17. उत्तराध्ययन सूत्र 25/31 18. वही,25/30 19. वही,25/29 20. कर्मजं लोक वैचित्र्यं, अभिधर्म कोष 4/1, राजेन्द्र सूरि 21. भगवती सूत्र, 12/5 22. कम्मुणा उवाहा जायइ । आचारांग सूत्र, 1/3/1 23. न्याय दर्शन,3,1,37,3/2/69 24. सांख्य दर्शन - सांख्य प्रवचन भाष्य - विज्ञानभिक्षु, 6-41,6-44 25. (i) कर्मग्रन्थ, 1/35-36,
(ii) कर्म ग्रन्थ,5/21 26. पंचास्तिकाय, 134 27. जैन सिद्धान्त दीपिका, 4/1 28. स्थानांग, 1/4/9 टीका 29. उत्तराध्ययन,25/45 30. विशेषावश्यक भाष्य, गा. 1636 31. तत्वार्थ सर्वार्थसिद्धि, 2/7/161 32. (i) अयस्कान्तोपलाकृष्ट-सूचीवत् तद्वयोः पृथक् ।
अस्ति शक्तिर्विभावाख्या, मिथोबन्धाधिकारिणी ।। 45 ।। (ii) जीव-भाव-विकारस्य, हेतुः स्याद्र्व्यकर्मतत् ।
तद्वेतुस्तद्विकारश्च यथा प्रत्युपकारकः ।। 109 ॥ पंचाध्यायी, 2 अध्याय 33. जीवंगाणं अणाइ-संबंधो, कणयोवले मलं वा ताणत्थितं सयं सिद्ध । गोम्मटसार, (क.) 2/3 34. पंचास्तिकाय संग्रह, गा. 128,129, 130 35. पीसयर कोडि-कोडि नामे गोए सत्तरी मोहे ॥कर्मग्रन्थ,5/26 36. स्थानांग सूत्र,77, भगवती सूत्र 37. उत्तराध्ययन सूत्र,4/3 38. उत्तराध्ययन सूत्र,4/4 39. विशेषावश्यक भाष्य, 1/93 40. श्री मदभागवदगीता.2/47 41. भगवती सूत्र, सुधर्मास्वामी,1/3/116, पृ. 166,1/1/27 42. समयसार कुन्दकुन्दाचार्य, संवर अधिकार, गाथा, 191 43. भगवती सूत्र सुधर्मास्वामी, प्र. जैन प्रिं प्रे. सैलाना, 1/1/10, पृ. 48