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110* जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
की है। ई.पू. 2350 के लगभग हड़प्पा वालों के साथ पश्चिमी एशिया की सुमेरी सभ्यता का सम्पर्क निश्चित रूप से रहा प्रतीत होता है। तत्कालीन काल गणना में यह तिथि महत्त्वपूर्ण है। हड़प्पा सभ्यता के चिह्न गंगा, चम्बल और नर्मदा के कांठों में पश्चिमी उत्तरप्रदेश (हस्तिनापुर) आदि में पश्चिमी राजस्थान तथा गुजरात कठियावाड़ आदि प्रदेशों में भी प्राप्त हो चुके हैं, जो इसके विस्तृत प्रसार के सूचक हैं। इस सभ्यता की उत्तराधिकारिणी झूकर आदि उत्तरवर्ती सभ्यताएँ मानी जाती हैं। तदुपरान्त आर्यों (इन्डो-आर्यों) का तथा उनकी वैदिक सभ्यता का उदय हुआ माना जाता है। वैदिक सभ्यता के विकास एवं प्रसार के साथ आर्हत धर्म के प्रभाव एवं विस्तार में न्यूनाधिकता समय-समय पर आती रही। लेकिन इस संस्कृति का समूल विनाश कभी नहीं हुआ वरन् यह जैन धर्म के नाम से आज भी विद्यमान है और सदैव रहेगी। इसका कारण है, कि यह धर्म एवं संस्कृति शाश्वत मूल्यों, सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक नियमों पर आधारित है। अतः यह प्राचीनतम सभ्यताओं की आधारशिला होने के साथ-साथ वर्तमान युग में भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शक एवं प्रासंगिक
है।
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संदर्भ सूची 1. विल्सन ग्रन्थावली, भाग 1, पृ. 334 2. लिले, इण्डिया एण्ड इट्स प्रोब्लम्स, पृ.144
राहुल सांकृत्यायन, धम्मपदं - गा. 20, अ.1 राहुल सांकृत्यायन, धम्मपदं - गा.7, अ.98-99 राहुल सांकृत्यायन, धम्मपदं - गा. 10,अ. 142 राहुल सांकृत्यायन, धम्मपदं - गा. 14,अ. 184
राहुल सांकृत्यायन, धम्मपदं - गा. 19, अ. 264-265 8. राहुल सांकृत्यायन, धम्मपदं - गा. 19, अ. 272 9. राहुल सांकृत्यायन, धम्मपदं - गा. 26,अ. 420
राहुल सांकृत्यायन, धम्मपदं - गा. 26, अ422 11. मज्झिम निकाय, पृ. 48 से 50 12. अंगुत्तर निकाय,3,74 से.बु.ई. पुस्त० 45, प्रस्तावना, पृ. 45 13. याकोबी, इण्डियन एण्टी., पुस्त.9, पृ. 160 14. याकोबी, से.बु.ई., पुस्त. 45, पृ. 122-123 15. एनसाइक्लोपिडिया ब्रिटानिका व्हा०, पृ. 29 16. ऋग्वेद संहिता, 10/11/136/2 17. तैतिरीय अरण्यक, 1/21/3, 1/24 78. श्रीमद् भागवत्, 5/3/20 19. पद्मपुराण, 13/350