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जैन धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की प्राचीनता* 109
इस प्रकार उपलब्ध पुरातात्विक अवशेषों स्मारकों तथा साक्ष्यों के द्वारा यह तो निश्चित रूप से प्रमाणित हो ही जाता है, कि जैन धर्म एवं संस्कृति विश्व की प्राचीनतम सभ्यता थी । वर्तमान में जितने पुरातात्विक साक्ष्य हमारे समक्ष विद्यमान हैं, उनसे कई गुना अधिक भूगर्भ में अज्ञात रूप से विद्यमान हैं, जो आज भी ज्ञात होने के लिए अपेक्षित हैं। जैसा कि एक पुरातत्त्ववेत्ता का कथन है, " अगर हम दस मील लम्बी त्रिज्या लेकर भारत के किसी भी स्थान को केन्द्र बना वृत्त बनावें तो उसके भीतर निश्चय से जैन भग्नावशेषों के दर्शन होंगे।"
निष्कर्षतः यही कहा जा सकता है, कि जैन धर्म, दर्शन, संस्कृति एवं सभ्यता साहित्यिक विश्लेषण के आधार पर आदि तीर्थंकर ऋषभदेव भगवान तक जाती है। इसकी पुष्टि पुरातात्विक साक्ष्यों के द्वारा हो जाती है, जो इसे सिन्धु घाटी सभ्यता जितना प्राचीन सिद्ध करते हैं। डॉ० हेरास के अनुसार " मोहन जोदड़ो का प्राचीन नाम नन्दूर अर्थात् मकर देश था और नन्दूर लिपि मनुष्य की सर्वप्रथम लिपी थी तथा यह सभ्यता मनुष्य की भूतल पर सर्वप्रथम यभ्यता थी ।" डॉ० हेरास इस सभ्यता को द्रविड़ीय ही मानते हैं । यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है, कि 'मकर' नवें तीर्थंकर पुष्पदन्त का लांछन है। जॉन मार्शल इस सिन्धु सभ्यता की जननी उत्तर भारत के मध्य देश में उदित एवं विकसित संस्कृति को मानते हैं। प्रो० एस० श्रीकण्ठशास्त्री का कहना है, कि अपने दिगम्बर धर्म, योगमार्ग, वृषभ आदि विभिन्न लांछनों की पूजा आदि बातों के कारण प्राचीन सिन्धु सभ्यता जैन धर्म के साथ अद्भुत सादृश्य रखती है, अतः वह मूलतः अनार्य अथवा कम से कम अवैदिक तो है ही ।
अतः ऐसा प्रतीत होता है, कि इस प्राचीन सिन्धु सभ्यता के पुरस्कर्ता प्राचीन विद्याधर जाति के लोग थे, जिन्हें द्रविड़ों का पूर्वज कहा जा सकता है। लेकिन साथ ही उनके प्रेरक एवं मार्गदर्शक मध्य देश के वे मानव वंशी मूल आर्य थे, जो तीर्थंकरों के आत्मधर्म और श्रमण संस्कृति के उपासक थे। तीसरे तीर्थंकर सम्भवनाथ से लेकर नवें तीर्थंकर पुष्पदन्त तक का काल सिन्धु सभ्यता के विकास का काल है । सुपार्श्व से पुष्पदन्त पर्यंत का काल उसका उत्कर्ष काल रहा है ।
प्रायः इसी समय पंजाब के मान्टगुमारी जिले के हड़प्पा शहर में एक अन्य सभ्यता विकसित होने लगी थी। इसका काल लगभग ई०पू० 3000 से 2000 वर्ष माना जाता है। हड़प्पा वाले भी अनार्य और अवैदिक थे। नवोदित वैदिक आर्यों का हड़प्पा वालों के साथ ही सर्वप्रथम एवं अत्यधिक भीषण संघर्ष हुआ । वैदिक साहित्य के दस्यु, असुर आदि यही थे ।
पश्चिमी एशिया में एक के बाद एक आने वाली सुमेर, असुर, बाबुली आदि सभ्यताओं का सम्पर्क अपने से ज्येष्ठ ( पूर्वकालीन) मोहन जोदड़ों एवं समकालीन हड़प्पा सभ्यता के साथ विशेष रहा। मिस्र की प्राचीनतम सभ्यता भी प्रायः इसी काल