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मार्ग मानना यह न्याय रूप कैसे हो सकता है ? वस्त्र या उपधि में ऐसी कौन सी ताकत है जो कि सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र होने पर भी मोक्ष को रोके ?
दिगम्बर- -- जनाब ! वस्त्र केवल ज्ञान को रोकता है ।
जैन- महानुभाव ! यह आपकी सुझ अर्वाचीन दिगम्बर पंडितों की ही कृपा का फल है । परन्तु दिमाग से जरा सा तो सोचिये कि यह किस हद तक सत्य है । एक मामूली ज्ञान भी वस्त्र पहनने से न रुकता और न दब सकता है । तो केवल ज्ञान जो कि अघाति चार कर्मों के द्वारा भी नहीं दब सकता है । कैसे दब जायगा उस लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञान को सिर्फ देह से ही सम्बन्धित वस्त्र दबा देवें या भगा देवें यह तो दिगम्बरत्व के श्रमही को ही विश्वास हो सकता 1
दिगम्बर "शायटायनाचार्य" भी साफ फरमाते हैं कि वस्त्रा दून मुक्तिविरहो भवतीति इस दिगम्बर मान्यतानुसार पाण्डवों को गले में लोहा होने पर भी केवल ज्ञान की प्राप्ति व उपस्थिति मानी जाती है, फिर सवस्त्र दशा में केवल ज्ञान का अभाव क्यों
माना जाय ?
केवलज्ञान सिंहासन स्वर्णकमल इत्यादि विभूतियाँ से या देह गुणों से दब जाता नहीं है, मगर वस्त्र से दब जाता है । यह कितनी बुद्धि शून्य कल्पना है ?
( समय प्रा० गा० ३३, ३४ )
सारांश- केवल ज्ञान ऐसी पौद्गलकि वस्तु नहीं हैं कि जो वस्त्र से रुक जाय !
दिगम्बर -- उपधि के लिये हमारे शास्त्र का पाठ दीिजिये जैन--उपाध के बारे में दिगम्बरीय प्रमाण निम्न हैं ।