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[ ३२ ] गृहस्थ ही करते हैं, फिर कैसे माना जाय कि सबस्त्र दशा में सा. मायिक नहीं है । ___ यद्यपि दि० प्राचार्यों को सवस्त्र सामायिक आदि करने की बात खटकती है और उस सिलसिला में किसी २ ने तो इन श्रावक व्रतों को उड़ाने तक की कोशीश भी की है, किन्तु वे कामयाब न हुए । इस बात का निम्न लिखित मत भेदों से पत्ता पाया जाता है।
A६ दिग् ७ देशा ८ नर्थ दंड विरति ९ सामायिक १० पौषधो पवासो ११ पभोग परिमाणा । २ तिथिसंविभाग व्रत संपन्नश्च ॥ २१ ॥ मारणान्ति की सल्लेखनां जोषिता च ॥ २२ ॥ *
(दिगम्बरीय तत्वार्थ सूत्र भ०७ ) ___B६ दिगरिमाण, ७ भोगोपभोगप० ८ अनर्थ दंड विरति ९ सामायिक १० देसावगासिक । पौषध १२ प्रातिथि संविभाग
(ग्न करंड श्रावका चार पं आशाधर कृत सागारधर्मामृत) CE सामाइयं च पढमं, १० बिदियं च तहेव पोसहं भणियं । " तइयं अतिहि पुज्ज, १२ चउत्थं संलहेणा अंते ॥ २६ ।।
( आ० कुन्द कुन्द कृत चारित्र प्रामृत गा० २६ ) * अतिथिसं विभाग की दिगम्बर विधि इस प्रकार है।
व्रतम तिथि संविभागः, पात्र विशेषाय विधि विशेषेण । द्रष्य विशेष वितरणं, दातृ विशेषस्य फल विशेषाय । ५।११। ज्ञानादिसिध्यर्थ-उनुस्थित्यर्था-स्नाय यः स्वयम् । परनेनाऽतति गेहंवा, न तिथि यस्य सोऽतिथिः । ५ । ४२ । पतिः स्या दुत्तमं पात्रं, मध्यमं श्रावकोऽधर्मम् । सुदृष्टि स्तद्वि शिष्टत्वं, विशिष्ट गुण योगतः । ५।४४ । कृत्वा. माध्यान्हिकं भोक्तु-मुद्यक्तो ऽतिथये ददे। स्वार्थ कृतं भक्तमिति, ध्यायन्नतिथि मीक्षताम् । ५ ।५।।
(पं० आशाधर कृत सागार धर्मामृत अ०.५) ...........