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स्त्रीलिंगका ही प्रयोग करना चाहिये था, किन्तु वैसा हुआं नहीं है, कई श्वेताम्बर शास्त्रमें भी आपके लीये “कर्मगन्मूलने हस्तिमलं मल्लीमभिष्टुमः" इत्यादि पुंल्लिंग में प्रयोग किये गये है, यह क्यों? . जैन-किस लिंग का प्रयोग करना ? यह व्याकरण का विषय है। व्याकरण तो स्वलिंग का पक्ष करते हैं और लिंग व्यभिचार को भी सम्मति देते हैं, 'कलत्रं गृहिणी गृह' इत्यादि अनेक नजीरे मौजूद हैं। दिगम्बर आगमशास्त्र भी इस बात की स्वीकृति देते हैं, जैसा कि
लिंग व्यभिचारस्तावदुच्यते, स्त्रीलिंगे पुल्लिंगाभिधानं तारकास्वातिरिति ।
"स्वाति तारा" यहां स्त्रीलिंग का पुलिंग में प्रयोग किया गया है।
(दि. षट्खंडागम-धवलशान पृ० ६४) इसी ही प्रकार "मल्लीनाथ तीर्थकर" का भी पुलिंग में प्रयोग किया जाता है।
दूसरी बात यह है कि व्यवहार में सामान्यतया बहुसंख्या को प्रधानता दी जाती है, जैसा कि
स्त्रीसभा-यहाँ २-४ पुरुष व बालकों की उपस्थिति होने पर भी स्त्रीओंकी विशेषता होने के कारण यह शब्दप्रयोग किया जाता है।
पंचांगुली-यहां अंगूठा पुलिंग है किन्तु आंगुली ४ होने के कारण यह शब्दप्रयोग भी प्रमाणिक माना जाता है।
रेल्वे गाडी-यह स्त्रीलिंग शब्द है, फिर उसमें पंजाबमेल फ्रन्टीयरमेल वगेरह पुल्लींग नामों का भी समावेश हो जाता है ।
हाथी का स्वप्न-माता त्रिशला रानीने १४ स्वप्नों में प्रथम 'सिंह'को ही देखा था, किन्तु उनके चरित्रमें प्रथम 'हाथी' के स्वप्न का वर्णन किया गया है। कारण यही है कि-२२ तीर्थकरोकी माताओंने प्रथम स्वप्न में 'हाथी'को देखा था, इसी प्रकार सर्वत्र बहु संख्या की प्रधानता दो जाती है।
ईसी प्रकार यहां २३ तीर्थकर है और १ तीर्थकरी है।