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दिगुम्बर भी मानते हैं । फिर भी 'मल्लीकुमारी' तीर्थकरी हुई अतः वह 'अघट घटना' है ।
दिगम्बर- क्या दिगम्बर शास्त्र भी स्त्रीके तीर्थकर पद की साफ २ मना करते हैं ?
जैन - हां जी, दिगम्बर शास्त्र भी साधारणतया स्त्रीको “तीर्थकर नामकर्म" का उदय मानते नही हैं। देखिए प्रमाणमणुसिणिए त्थी सहिदा, तित्थयरा हार पुरिस- संतॄणा ।
मनुषीणी को तीर्थकर, आहारक द्वय, पुरुषवेद और नपुंसक वेदका कभी भी उदय होता नहीं है ।
सारांश - पर्याप्त मनुषीणी को कभी भी १ - अपर्याप्त नामकर्म का उदय नहीं है, २ - तेरहवे गुणस्थान में जाने पर तीर्थकर नाम प्रकृति का उदय नहीं है । ३-४-प्रमत्तसंयत गुणस्थान में जाने पर भी आहार द्विकका उदय नहीं है । ५- नौंवे गुणस्थान तक पुरुष वेद का उदय नहीं और ६- नावे गुणस्थान तक नपुंसक वेद का उदय नहीं है । पर्याप्त स्त्रीको इन ६ प्रकृति को छोड़कर शेष ९६ प्रकृति का उदय होता है ।
(दिगम्बर आचार्य नेमिचन्दजी कृत गोम्मटसार कर्मकांड गा० ३०१ ) साफ निरूपण है कि स्त्री मोक्ष में जाय मगर तीर्थकर
न बने ।
दिगम्बर- दिगम्बर इसे इस रूपमें क्यों मानते नहीं है ? |
जैन - उन्होने दिगम्बरत्व को पुष्ट करनेके लीये वस्त्र की मना की, साथ साथ में स्त्री मोक्षकी भी मना की। इस परिस्थिति में वे 'तीर्थकरी' को व इस आश्चर्य को तो माने ही कैसे ? । फिर भी गोम्मटसार में उपरोक्त वस्तु सुरक्षित है यह भी खुशीकी बात है ।
दिगम्बर - तीर्थकरीके स्त्री अंगोपांग दीख पड़ते होंगे ।
जैन - वास्तव में तीर्थकरी सवस्त्र ही होती हैं फिर भी जैसे नग्न तीर्थकर की नग्नता दीख पड़ती नहीं है वैसे तीर्थकरीके अंगोपांग भी दीख पड़ते नहीं है ।
दिगम्बर- यदि मल्लिनाथजी तीर्थकरी थे, तो आपके लीये