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________________ १२२ वाले ही थे। कल्पनाके जरिये मान लो कि-किसी एक दो की अवगाहना में कुछ फर्क भी हो, किन्तु चोथे आरे के मध्यकालके योग्य मध्यम अवगाहनावाले तो वे नहीं थे अतः वे पुरी अव. गाहनावाले माने जाते हैं। इस तरह उत्कृष्ट अवगाहना होने के कारण ही यह 'आश्चर्य' माना जाता है। दिगम्बर-श्वेताम्बर कहते हैं कि-(२) श्री सुविधिनाथ के तीर्थकालमें 'असंयति ब्राह्मणो की पूजा' जारी हुई। वह दूसरा "असंयतपूजा" आश्चर्य है। जैन-इसे तो प्रकारांतसे दिगम्वर शास्त्र भी आश्चर्य मानते है। अतः यह ठीक आश्चर्य ही है। दिगम्बर-श्वेताम्बर कहते हैं कि (३) भोग भूमि हरिवर्ष क्षेत्र का 'युगल' भरतक्षेत्रमे लाया जाय, वह मरके नरक में जाय और उसकी 'अयुगलिक' संतान परंपरा चले ऐसा बनता नहीं हैं किन्तु भगवान् शीतलनाथजी के तीर्थकालमें ऐसा प्रसंग बना और उससे " हरिवंश" :चला है। वह तिसरा "हरिवंशोत्पत्ति" आश्चर्य है। जैन-हरिवर्ष वगेरह भोगभूमि का युगलिक भरत का वासीन्दा बने और उसका कर्म भूमिज वंश चले इस बातकी तो श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों मना करते है। फिर भी यह हुआ, अत: वह 'अघट घटना' ही है। . दिगम्बर-दिगम्बर हरिवंश पुराण में भी हरिवंश की उत्पत्ति बताई है, जो यह है __ "१० वे श्री शीतलनाथ भगवान के तीर्थ में कौशाम्बी में सुमुख राजा था वहां एक शेठ रहता था उसको खुबसुरत शेठानी थी। राजाने एक दिन वसन्तोत्सब में शेठानी को देखा, और वह उस पर मोहित हुआ, शेठानी भी राजा पर मोहित हो गई, राजाकी इच्छानुसार बुद्धिमान मंत्री शेठानी को समझाकर राजमहेल में ले आया। वहां राजा और शेठानीजी प्रेमसे भेटे, संभोग किया और राजाने शेठानी को 'पटरानी' बनाई। इन दोनोंने दिगम्बर मुनि को दान दिया और उसके द्वारा बहोत पुण्य उपार्जित किया। एक दिन वीजलो गीरने से ये दोनों एक साथ
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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