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आचार्य धरसेनजी पूर्वधर माने जाते हैं। वह आश्चर्य हैं ।
इत्यादि २ अनेक बातें खड़ी हो जायगी । अतः मनमानी बातों को आश्चर्य में सामील करना नहीं चाहिये ।
मानना पड़ता है कि —
आश्चर्य की मान्यता प्राचीन है, और १० की संख्या भी प्राचीन है, इन दोनों बातें और अपने संप्रदाय की रक्षाको सामने रखकर ही दिगम्बर शास्त्र निर्माताओने उक्त आश्चर्य व्यवस्थित किये हैं। क्योंकि इनमें कई तो नाम मात्र ही आश्चर्य हैं और कई निराधार हैं । जो वस्तु ऊपर दी हुई विचारणा से स्पष्ट हो जाती है ।
दिगम्बर - श्वेताम्बर मान्य आश्चर्य भी ऐसे ही होंगे ? | जैन -उनकी भी परीक्षा कर लेनी चाहिये । आप उसे भी अलग २ करके बोलो ।
दिगम्बर - श्वेताम्बर कहते हैं कि - (१) उत्कृष्ट अवगाहनावाले १०८ जीव एक साथ एक समय में सिद्ध नहीं हो सकते हैं, किन्तु १ भगवान् ऋषभदेवजी, उनके भरत सिवाय के ९९ पुत्र, और ८ पौत्र एवं १०८ उत्कृष्ट अवगाहना वाले मुनिजी एक समय में ही सिद्ध बने । यह प्रथम 'अट्ठसय सिद्ध' आश्चर्य है ।
जैन -१ समय में उत्कृष्ट अवगाहना वाले १०८ जीव मोक्ष पा सकते नहीं हैं, मगर इन्होंने मोक्ष पाया, अत एव यह 'अवट घटना' हैं ।
दिगम्बर- इसमें आश्चर्य किस बात का ? दिगम्बर शास्त्र तो १ समय में १०८ का मोक्ष बताते हैं । देखिए पाठ -
अवगाहनं द्विविधं, उत्कृष्टजघन्यभेदात् । तत्र उत्कृष्टं पंचधनुःशतानि पंचविंशत्युत्तराणि, जघन्यमर्द्ध चतुर्था रत्नयः देशोनाः । ( तत्वार्थ राजवर्तिक पृ० ३६६ श्लोकवतिक पृ० ५११ ) एकसमये कति सिध्यन्ति ? जघन्येनैकः उत्कर्षेणा ऽष्टशतमिति संख्या sवगन्तव्या ।
( तत्वार्थ राजवर्तिक पृ० ५३६ ) माने उत्कृष्ट अवगाहना ५२५ धनुष्य की और जघन्य अवगाना कुछ कम ३ || रत्नी की हैं, और १ समय में जघन्य से १ व उत्कृष्ट से १०८ जीव मोक्ष में जाते हैं ।