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विद्वानों का मत है कि-इसा मसीह ने कई वर्ष पर्यन्त हिन्द में रह कर जैन बौद्ध या शैव धर्म का परिशीलन किया और बाद में यूरोप में जाकर इसाई धर्म की स्थापना की। यहां के २४ श्रव. तारों को उन्होंने उक्त शब्दों द्वारा ईश्वरी स्थान दिया है। मगर बौद्ध धर्म में इस प्रचार २४ बौद्ध नहीं है और शैव धर्म में २४ अवतार मनुष्य रूप से नहीं है। सिर्फ जैन धर्म में ही २४ तीर्थकर है और वे मनुष्य ही है, अतः उस आयात में २४ बुजुर्ग के रूप में इनका ही सूचन है । इसके अलावा इसाई धर्म में पापों की क्षमा मांगने की विधि भी जैन प्रतिक मण का ही कुछ अनुकरण है। इससे तय पाया जाता है कि-इसा मसीह ने यहां जैन धर्म का पेरिलिन किया हैं । यदि यह बात सच्ची है तो उस समय में २४ तीर्थंकर पोषाक में माने जाते थे। यह भी स्वीकृत करना पडेगा। दिगम्बर-भगवान महावीर स्वामी के युग के जैन मुनि नग्न ही थे। जैन-यह बात निम्नलिखित प्रमाणों से गलत है।
१-बौद्ध शास्त्रों में सूचित "चाउजामो धम्मो" वाले जैन साधु सवस्त्र ही थे!
२-बौद्ध आगमों में प्राजीवक मते की चर्चा है कि भाजीवक मत में समस्त जीवों के वर्गीकरण से छै अभिजातियाँ ( छै लश्या के समान विकास पायरी ) मानी गई हैं जो इस प्रकार हैं। १-कृष्णाभिजाति-क्रूर मनुष्य
-वीलाभिजाति-भिक्षु, बौद्ध भिक्षु . ३-लोहित्याभि जाति-निर्गन्थ साधु जो नियत तया.. चोल पट्टा को पहिनते हैं माने जो वस्त्रधारी ही हैं।