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[१ ] विभूतियों के होने पर भी.अममत्व के कारण वे अपरिग्रही हैं परिग्रह से मुक्त है। ... ..
... . सारांश यह यह है कि दिगम्बराचार्य मूर्छा को ही परिग्रह मानते हैं। जैन-तब तो जैन साधु वस्त्रादि उपधि को रखते हैं उसमें भी अममत्व होने से परिग्रह दोष नहीं है। दिगम्बर- तीर्थकर भगवान तो नग्न ही होते हैं मगर अतिशय से अनग्न से दीख पड़ते हैं। जैन तीर्थकर भगवान के ३४ अतिशयों में ऐसा कोई भी अतिशय नहीं है जो नग्नता को छिपावे, वास्तव में तीर्थंकर भगवान सवस्त्र ही होते हैं बाद में, किसी का वस्त्र गिर जाय तो अनग्न भी होते है । इस प्रकार तीर्थकरो में नग्नता या अनग्नता का कोई एकान्त नियम नहीं है।
बौद्ध धर्म के त्रिपीटक शास्त्रों में भ० पार्श्वनाथ के अनुयायीयों को चातुर्याम धर्मवाले और सर्वस्त्र माने है यानी भगवान पार्श्वनाथ और उनकी सन्तान सवस्त्र थी नग्न नहीं थी। मथुरा के कंकाली टोला से प्राप्त दो हजार वर्ष की पुराणी जिनेन्द्र प्रतिमाएँ अनग्न हैं,। दिगम्बर चिन्ह से रहित है । जिनके ऊपर श्वेताम्बर प्राचार्य के नाम खुदे हुए हैं । वहाँ करीब १०० वर्ष पुरानी दिगम्बरीय प्रतिमाएं भी है जो खुल्लम खुल्ला दिगम्बर ही है इससे भी स्पष्ट है कि दो हजार वर्ष पहिले "तीर्थकर भगवान नग्न ही होते हैं" ऐसी मान्यता नहीं थी। . मका शफते बाब ४ आयात ४ में तख्त नशीन सफेद वस्त्रवाले और सोने के ताज वाले २४ बुजुर्ग का वर्णन है संभवतः वह २४ करों का वर्णन है। . .... ... ...