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प्रश्न भी निरर्थक है। इस परिस्थितीमें उंचे जाकर आकाश में नहीं किन्तु भूमि पर ही कमलों द्वारा विहार मानना यही उचित मार्ग है।
निर्वाणतीर्थ भूमि पर ही होता है यह बात भी तीर्थकर के भूमि विहार की समर्थक है ।
दिगम्बर-तीर्थकर भगवान के भूमि विहार का दिगम्बरीय प्रमाण दीजिये
जैन-दिगम्बरशास्त्र तीर्थकर का भूमिविहार मानते है देखियेनभस्तलं पल्लवयन्निव त्वं, सहस्रपत्रांबुजगर्भचारैः । पदाम्बुजैः पातित मारदर्पो, भूमौ प्रजानां विजहर्ष भूत्यै ॥२९॥ यस्य पुरस्ताद् विगलितमाना, न प्रतितीर्थ्या भुवि विवदन्ते । भूरपि रम्या प्रतिपदमासीत्, जातविकोशाऽम्बुजमृदुहासा ॥१०८॥
(स्वयंभू स्तोत्र) उन्निद्रहेम नव ९ पंकज पुंजकांति पर्युल्लसन्नख मयुख शिखाभिरामौ ॥ पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र ? धत्तः । पन्नानि तत्र विवुधाः परिकल्पयन्ति ॥३२।।
(आ० मानतुंगसूरि कृत भक्तामर "लो० ३२) दिगम्बर-केवली भगवान् कषलाहार करें तो करें परन्तु तीर्थकर भगवान् तो कवलाहार नहीं करते हैं ।
जैन-दिगम्बर शास्त्र केवलीओं की तरह तीर्थकर भगवान् को भी कवलाहारी और तपस्वी बताते हैं जैसे कि
(१) "जीने एकादश" माने तीर्थकर भगवान को भूख और प्यास लगती है
(मा० उमास्वातिकृत, तत्वार्थसूत्र अ० ९ सू० ११) (२) अर्हत आहारानाहरकद्वयं ॥३३॥