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३४ अतिशय - अधिकार
जो
दिगम्बर - तीर्थकर भगवान को ३४ अतिशय होते हैं, अन्य साधारण मनुष्यों में नहीं किन्तु सीर्फ तीर्थंकर भगवान् में ही होते हैं वे अतिशय माने जाते हैं । वे, सफेद खून वगैरह १० जन्मसे, चतुर्मुख वगैरह १० घातिक्षय से, और अर्धमागधी भाषा वगैरह १४ देवसानीध्यसे यूं ३४ होते हैं।
( आ० पूज्यपाद कृत नंदीश्वर भक्ति लो० ३५ से ४८ दूसरी प्रतिमें लो० ३८ से ५१ दर्शनप्राभृत गा० ३५ श्रुतसागरी टीका पृ० २८ बोधप्रामृत गा० ३२ श्रुतसागरी टीका पृ. ९८ )
जैन तीर्थंकर की जीवनी में ये "अतिशय" ही प्रधान वस्तु हैं, अतः इन पर अधिक गौर करना चाहिये ।
दिगम्बर - तीर्थकरके शरीर में जन्म से १० अतिशय होते हैं । १ पसीनाको अभाव २ निर्मलता ३ सफेदखून और मांस ४ सम चतुरस्रसंस्थान ५ वज्रऋषभनाराच संहनन ६ सुरूप ७ सुगंध ८ सुलक्षण ९ अनन्त बल १० प्रियहितबादित्व ।
जैन - वज्र
- वज्रऋषभनाराच संहनन सब मोक्षगामी मनुष्यको होता ही है, अतः उसे तीर्थंकरका अतिशय नहीं मानना चाहिये । खून और मांस दो भिन्न२ हैं पर उनके निमित्त का अतिशय एक है, इसी तरह सर्वाङ्गसुन्दर शरीर ऐसा १ अतिशय रखने से उसमें निर्मलता सुरूपता वगैरह अतिशयोंका भी समावेश हो सकता है । इस हिसाब से इन अतिशयों की संख्मा भी कम हो जायगी ।
तीर्थकर को शुरु से १० अतिशय होते हैं बढते २ केवली दशामें ३४ अतिशय हो जाते हैं माने - शुरुके १० अतिशय उन्हें
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