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['९०.] ही स्त्रियों को पहिले तीन संहनन नहीं रहते हैं किन्तु अंत के तीन ही रहते हैं।
जैन--विज्ञान के नियमानुसार वस्तु की क्रमशः हानि वृद्धि होना यह तो ठीक बात है किन्तु आपने तो एक ही हुक्म से एक दम, एक नहीं, दो नहीं, किन्तु तीन २ संहननों का परिवर्तन कर दिया। वाह जी वाह ? क्या पहिले संहनन वाली सब एक साथ मर गई यानी उन सब को एक साथ में देह पलटा हो गया। न मालूम ऐसी २ कई कल्पित बाते दिगम्बर शास्त्रों में दाखिल कर दी गई होंगी । वास्तव में दि० शास्त्र तो स्त्री वेद में छै संहनन का उदय मानते हैं । उक्त गा. ३१ में छै संहननों का विधान है। बन्धसत्वाधिकार में छै संहनन बताये हैं और गा०३८८ गा० ७१४ इत्यादि कई स्थानों में स्त्री के लिये क्षपक श्रेणी व अवेदिपन वगैरह उल्लेख हैं। फिर भी स्त्रियों के लिये वज्र ऋषभनाराच वगैरह सहननों का निषेध करना यह तो किसी भाषा टीकाकार दिगम्बर विद्वान की ही नई सूझ है। . . स्त्री मरकर छटे नरक में जाती है कि जहां पहिले तीन संहननवाले जा सकते नहीं है, इसीसे भी स्त्री को शुरु के ३ संहनन होना सिद्ध है।
दिगम्बर विद्वान् श्रीमान् अर्जुनलाल शेठी तो स्त्री मुक्ति पृ० २३ व २७ में उक्त गाथा को क्षेपक ही बताते हैं और दिगम्बर शास्त्रों के अनुसार स्त्रियों को छै संहनन का होना मानते हैं।
दिगम्बर-समकीती मरकर स्त्री वेद में नहीं जाता है, फिर स्त्री वेद में केवल ज्ञान कैसे होवे ? ___ जैन समकीती मरकर मनुष्य गति में भी नहीं जाता है फिर तो मनुष्य को भी केवल ज्ञान नहीं होना चाहिये, आपके