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द्वितीय अध्याय : २५
दो स्वर्णकारों की
गाँव ही बस जाते थे यथा - वाणिज्यग्राम, निषादग्राम, कुम्हारग्राम, ब्राह्मणग्राम, क्षत्रियग्राम । जातक ग्रंथों में तो ऐसे बढ़ई और लोहार ग्रामों का वर्णन है जहाँ ५०० बढ़ई और ५०० लोहार रहते थे । जीविका की खोज में ये शिल्पी एक स्थान से दूसरे स्थान पर भी चले जाते थे । ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि मिथिला के श्रेणी वाराणसी में बस गई थी । समुद्रवीणक जातक से कि ५०० बढ़इयों के परिवार आजीविका की खोज में थे। इसी प्रकार कुमारगुप्त के प्रस्तर अभिलेख के अनुसार लाट में बसे पट्ट्वायों की श्रेणी दशपुर नगर में जाकर विविध व्यवसाय करने लगी थी ।" बृहत्कल्पभाष्य में भी आजीविका की खोज में भ्रमण करने वाले 'औदारिक सार्थ' का उल्लेख है । प्राचीन काल में बेकारी जैसी समस्या नहीं दिखती । कृषि, उद्योग और व्यापार इतने विकसित थे कि वह अधिक से अधिक लोगों को रोजगार देने में सक्षम थे ।
भी पता चलता है अन्यत्र चले गये
पूँजी
उत्पादन में पूँजी का महत्त्व
धनार्जन का तीसरा महत्त्वपूर्ण साधन पूँजी है । आज भी उद्योग और व्यवसाय की समृद्धि हेतु प्रचुर पूँजी उपलब्ध होना आवश्यक है । - प्रश्नव्याकरण से ज्ञात होता है कि क्षेत्र, वास्तु, हिरण्य, सुवर्ण, धन-धान्य, द्विपद, चतुष्पद, दास-दासी, कुप्य, (गृह सम्बन्धी उपकरण ), धातु आदि सब मनुष्य की सम्पत्ति माने जाते थे । उपासकदशांग में गाथापति आनन्द की सम्पत्ति का वर्णन करते हुए कहा गया है कि उसके पास १२ १. उपासकदशांग १/४; विपाकसूत्र, ८/६ ११ / १११.
भगवतीसूत्र ९ / ३३/१, २४;
२. सूची जातक, समुद्धवणिक जातक - आनन्द कौसल्यायन, जातक कथा, भाग ४, पृ० ३५८, भाग ३, पृ० ४३४.
३. ज्ञाताधर्मकथांग, ८/११७.
४. समुद्धवणिक जातक आनन्द कौसल्यायन - जातक कथा, भाग ४, पृ० ३५८. ५. कुमारगुप्त प्रथम तथा वन्धुवर्मन का मन्दसौर अभिलेख : ए० के० नारायणः प्राचीन भारतीय अभिलेख संग्रह ९, पृ० १२३.
६. बृहत्कल्पभाष्य, भाग ३, गा० ३०३६.
७. प्रश्नव्याकरण सूत्र १० / ३, उत्तराध्ययन ३ / १७. देखिए - अध्याय २ : दास-दासियाँ