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१४६ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आथिक जीवन
उत्तराध्ययनचूणि से ज्ञात होता है कि एक व्यक्ति एक काकिणी में भोजन कर सकता था इससे स्पष्ट है कि खाने-पीने की वस्तुएँ सस्ती थीं।' जैन ग्रन्थों में सुवर्ण सिक्कों के उक्त उल्लेखों से कुषाणकाल और पूर्व गुप्तकाल एवं गुप्तकाल की व्यापारिक अवस्था पर प्रकाश पड़ता है। सिक्कों के बहुत अधिक प्रचलन से ही आन्तरिक एवं विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई थी। ____ गुप्तकाल में भोज्य पदार्थों का मूल्य अत्यल्प होने से ही डेढ़ या दो दोनार वार्षिक में एक मनुष्य का निर्वाह भलीभाँति हो जाता था। इसी कारण इस काल में विनिमय के लिये कौड़ियों का प्रचलन था।
१. उत्तराध्ययनचूर्णि, पृ० १६२ २. चन्द्रगुप्त द्वितीय का साँची प्रस्तर अभिलेख,
नारायण ए० के०, प्राचीन भारतीय अभिलेख संग्रह २, पृ० ३५