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________________ पूर्व मध्यकालीन उत्तर भारत की राजनातिक व्यवस्था 50. पूर्व मध्यकालीन उत्तर भारत की राजनीतिक व्यवस्थाः प्रतिहार प्रशासनिक व्यवस्था के विशेष सन्दर्भ में । * / 405 विजया कुमारी हर्ष की मृत्यु के बाद मध्य भारत में लम्बे समय तक अनवरत युद्ध चलते रहे, अशान्ति बनी रही। काश्मीर को छोड़कर लगभग 150 वर्षो तक समस्त उत्तरी भारत में राजनैतिक विकेन्द्रीकरण के कारण समान राजनैतिक व्यवस्था नहीं रही एवं प्रशासन का स्वरुप भी स्पष्ट नही था । आठवीं शताब्दी के अन्त तथा नवीं शताब्दी के आरम्भ में कन्नौज के गुर्जर प्रतिहारों ने साम्राज्यिक सत्ता स्थापित की इससे राजनीतिक परिस्थितियाँ बदली और एक सुव्यवस्थित शासन आरम्भ हुआ। उन्होंने भारत को पुनः गौरव दिलाया, जिसकी चर्चा अरब लेखक भी करते हैं। प्रतिहारों का उदय श्रीमाल अथवा भीनमाल दक्षिणी राजपूताना में हुआ था।' प्रतिहार शासक प्रथम नागभट्ट ने मालवा और राजपूताना में अपनी सत्ता स्थापित की और भडौंच तक अपना विस्तार किया। उसने चाहमान शासक भर्तृवड्ड को वहां श्री महासामन्तधिपति नियुक्त किया। इसी वंश के शासक वत्सराज ने उज्जैन तक अपनी सत्ता स्थापित की। जोधपुर के प्रतिहार तथा चाहमानों ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली।" अतः भड़ौच के चाह्नान शाकम्भरी के चाहमान तथा जोधपुर के प्रतिहार शासक "इनके अधीन सांमत स्थिति में थे। द्वितीय नागभट्ट, जो कि वत्सराज का उत्तराधिकारी था, का साम्राज्य आनर्त (उत्तरी काठियावाड़), मालव (मध्य भारत), मत्स्य (पूर्वी राजपूताना), किरात (हिमालग श्री तलहटियों के जांगल प्रदेश) तुरुष्क (पश्चिमी भारत के उस क्षेत्र पर जो मुस्लिम अधिपत्य में था तथा वत्स (प्रयाग कौशाम्बी क्षेत्र तक ) के साथ-साथ कई पर्वतीय दुर्गों तक फैल गया था।' संभवतः ये दुर्ग गुर्जरात्रा भूमि एवं कालजर मण्डल तक विस्तृत थे। मिहिर भोज के काल तक प्रतिहारों की शक्ति सूर्य के समान देदीयमान हो रही थी। उसकी सीमाएं उत्तर पूर्व में गोरखपुर से लेकर बिहार तक उत्तर पश्चिम मे सम्पूर्ण पंजाब मध्य भारत के सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश पश्चिम में राजपूताना के बड़े भू-भाग दक्षिण-पश्चिम में काठियावाड और दक्षिण मे बुन्देलखण्ड मालवा सहित नर्मदा की उत्तरी घाटी तक फैली हुई थी। चाट्सू के गुहिल, गोरखपुर के कलचुरि प्रतापगढ़ के चाहमान आदि उसके अधीन सामंत स्थिति मे उसके अधीन अनके करद सामंत अपेक्षाकृत अधिक स्वायतता का भोग करते थे? | महेन्द्रपाल को अपने पिता भोज से विशाल प्रतिहार साम्राज्य विरासत में मिला। उसने न केवल उसकी रक्षा की वरन उसे पूर्व में और अधिक विस्त त किया। उसके अपने वंश के परम्परागत शत्रु पालों को उनके घर में (दक्षिणी बिहार, छोटा नागपुर और उत्तरी बंगाल) मात दी। और इन प्रदेशो पर अपना अधिकार बनाए रखा। इस समय प्रतिहारों की राजधानी कन्नौज के वैभव और समृद्धि का वर्णन तत्कालीन ग्रन्थो में मिलता हैं इससे स्पष्ट
SR No.022813
Book TitleJignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibha Upadhyaya and Others
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year2011
Total Pages236
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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