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मारवाड़ की जल संस्कृति / 389
बड़े जतन के साथ पानी खींचकर भगवान की पूजा के लिये कलश ले जाते है। इन कुओं का पानी इसलिये खराब नहीं हुआ क्योंकि इनके पानी का आज तक उपयोग होता रहा है। चांद बावड़ी व नाजरजी की बावड़ी से लोगों ने पानी लेना बंद कर दिया, इसलिये इनका पानी पीने योग्य नहीं रहा। तापी व जालप बावड़ी में लोग स्नान करते हैं। फिर भी इनका पानी आपातकाल में जल विभाग द्वारा पीने के लिये वितरित किया जाता है। अगर सभी बावड़ियों, कुओं, झालरों का पानी उपयोग में आता रहा होता तो इतना पानी गंदा नहीं होता। इन्हीं कुएं, बावड़ियों का पानी बिना उपयोग के जल स्रोतों में बढ़ता रहा और लोगों के भुआरों व भूतलों में रिसने लगा। लोगों का यह ख्याल है कि कायलाना का पानी घरों के भूतल (Under ground) में आ रहा है जबकि यह सच नहीं है। वैज्ञानिकों ने जमीन में दो जगह बोर करके देख लिया है
और जांच करने पर पता चला कि वह कायलाने का जल रिसाव नहीं है। जो मकान पानी के भराव क्षेत्र या पानी के मार्ग में बने हैं उन्हीं मकानों में पानी अधिक भरता है।
वर्तमान में आज जहां पर कचहरी की इमारत बनी है वह भी जल भराव का स्थान रहा था। अभी जो बारिश हुई उसमें पूरा परिसर तालाब की तरह भर गया था। जहां ढलान होगी वहां पानी अवश्य भरेगा। उस पानी को रोकने की कोशिश नहीं करनी चाहिये बल्कि उसकी निकासी के उपाय किये जाने चाहिये। __जोधपुर की औसत वर्षा 60-70 वर्षों से 11 इंच से 13 इंच के बीच रहती है। पहले अधिक संख्या में तालाब थे, जिनमें वर्षा का यह पानी इकट्ठा सुरक्षित रखा जा सकता था। कई तालाब आज अपना अस्तित्व खो चुके है। जैसे बख्तसागर जिस पर आज नेहरू पार्क कॉलोनी बसी हुई है। 'कालिया शरेस' तालाब, जिसका आपने नाम भी नहीं सुना होगा, प्रतापनगर थाने के पास था, वहां पर भी सघन बस्तियां बस चुकी है। वर्षा का पानी तो आज भी बरसता है और पहले भी बरसता था, पहले तालाबों में जाता था और नहरों के द्वारा इसे इकट्ठा करके अकाल के लिये सुरक्षित रखा जाता था। आज वह वर्षा का जल तालाबों पर बनी बस्तियों पर बरसता है और इधर-उधर बहकर भूमि में चला जाता है जिससे परी सतह का जल स्तर बढ़ जाता है।
महाराजा बखतसिंहजी ने अपने नाम पर दो तालाब बनवाए। एक नागौर में तथा दूसरा जोधपुर में जिसका नाम बखतसागर था। वर्तमान में इस तालाब मे एकमात्र कुआं शेष रहा है जो अब किस स्थिति में है यह ज्ञात नहीं है। इस तालाब को भरा हुआ देखकर निम्नलिखित दोहा कहा गया था
वखता कर सके तो कर, सरवर भरियो नीर।
हंसो फिर नहि आवसी, इण सरवर री तीर।। जोधपुर में नेहरू पार्क कॉलोनी बसने से पूर्व यहां आपस में एक गाली दी जाती थी जिसके शब्द थे- “भगवान करे, तू बख्तसागर री पाळ जाये” अर्थात बख्तसागर की पाळ पर मुर्गों को जलाया जाता था परन्तु आज उस बख्तसागर की पाळ पर जोधपुर के नामी संभ्रांत लोगों की कोठियां बनी है। वह गाली उस समय प्रचलित थी, परन्तु आज अच्छेअच्छे लोग उस पाळ पर रहना और बसना पसन्द करते हैं। भाण्डेलाव लाने की गाली तो आज भी देने की परम्परा है। एक दोहा शंभु सागर तालाब के सम्बन्ध में भी कहा जाता है जिसे मनकरणजी की नाडी भी कहते हैं।
भरा कटोरा निर्मल नीर, ज्ञान सागर सबका सीर।
वजे टंकी नाडो दाम, जुग जुग में मनकरण रा नाम। जल के विभिन्न स्रोत व उपयोग
रावटी से चांदपोल तक 31 बावड़िया व 15 कुएं हैं । जिनमें से शायद ही किसी कुएं बावड़ी का पानी कम हुआ होगा। इन जल स्रोतों से आज भी सिंचाई होती है व उसे पीने में उपयोग करते हैं।