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________________ 388 / Jijniāsā सबसे अधिक जल रिसाव की शिकायत परकोटे के शहर के अंदर के मकानों में है, जिसका कारण भी स्पष्ट है वह है आस-पास अनगिनत जलस्रोतों का उपलब्ध होना और उसके जल का उपयोग बंद होना। जहां तक कायलाना के पानी का अण्डरग्राउण्ड में आने की संभावना है, यह असंभव है, क्योंकि कायलाना और जोधपुर शहर के बीच में चार पहाड़ आते हैं। पहला अखैराजजी का भाखर, दूसरा चांदणा भाखर, तीसरा कबीर नगर का भाखर और चौथा बकरामण्डी के पास बाईजी महाराज के आश्रम का भाखर । इसमें चांदना भाखर के नाम का परिचय विशेष रूप से देना चाहूंगा। यह पहाड़ पूर्व से पश्चिम की तरफ फैला हुआ है। सूर्य उदय के समय भी सारे पहाड़ पर 'चांदणा' अर्थात प्रकाश रहता है इसलिये इसका नाम चांदणा प्रचलित हुआ। दूसरे पहाड़ों के एक तरफ प्रकाश रहता है और दूसरी तरफ अंधकार क्योंकि पहाड़ उत्तर-दक्षिण में आड़े बने हुए हैं। कायलाना के पानी का रिसाव इसलिये भी संभव नहीं है कि इसके बीच चार पहाड़ हैं और कायलाना के पानी का रिसाव अगर होता तो इन पहाड़ों पर भी उस पानी का कहीं सबूत मिलता जो एक ऊंचाई व स्तर पर है। शहर की बसावट कायलाना से काफी नीचे है और इन चारों पहाड़ों में कहीं पर भी जल रिसाव के संकेत नहीं मिलते हैं। इसलिये मैं इस तथ्य को नकारता हूं कि कायलाना का पानी शहर के भू-तलों में भरता है। भूमि के जल रोकने के समाधान इस समस्या का समाधान सीधा एवं सरल है। जिन जल स्रोतों का पीने के लिये उपयोग होता था, उनका उपयोग बंद हो गया है। त्रिपोलिया के पास गोरून्दा बावड़ी सबसे नीचे है और हमेशा जल से भरी रहती है। अगर उस पर एक इंच पाइप तथा पंप लगाकर पानी खींचा जाये तो उसे सोजती गेट की बारी के नाले में पानी पहुंचाया जा सकता है। उसके बाद आनन्द कसनेमा के पास परकोटे के नीचे, जालोरी गेट के नाले, रातानाडा के नाले उस अतिरिक्त पानी को निकाला जा सकता है। उस पानी को डिगाड़ी, झालामण्ड, भाण्डू, धवा, डोली एवं सालावास व बासनी के बीच पानी को बड़े हौज मै इकट्ठा किया जा सकता है और उसे खेती के काम में लाया जा सकता है। शहर की सभी बावड़ियों का पानी इसी प्रकार पाइपों द्वारा इन नालों के माध्यम से निकालकर उस पानी का उपयोग बाग-बगीचों, फैक्ट्रियों व बिना फिल्टर के पानी की जहां आवश्यकता हो वहां किया जा सकता है। इस प्रकार उपरी सतह का जल स्तर नियंत्रित रहेगा और शहर पानी पर तैरता नजर नहीं आयेगा। जल का समुचित उपयोग अभी प्रशासन या पी.एच.ई.डी. द्वारा खरबूजा बावड़ी के पानी को बालसमन्द ले जाने का प्रयास किया जा रहा है। वह बहुत महंगा पड़ेगा। इसे खाली करने के स्थान पर सभी बावड़ियों के जल को एक स्थान पर जोड़कर उसका उपयोग किया जा सकता है। मगरायजी के टांके से बी.एस.एफ. तक जो नाला बनाया गया है वह अच्छा बनाया गया है परन्तु नागौरिया बस्ती के पहले वह नाला खत्म हो गया और वह पानी वहां बिखर कर सड़ रहा है। अगर उस नाले का पानी नागादड़ी तक पहुंचा दिया जाता तो उसका सदुपयोग होता । कई जल स्रोत आज अपना अस्तित्व खो चुके हैं। घण्टाघर के पास उपरला बास व कुम्हारों के बास के पास मालेलाव तालाब अब नहीं है। मालदेवजी ने जब परकोटा बनाया, तब जगत सागर तालाब का निर्माण हुआ। वहां स्टेडियम ग्राउण्ड व पब्लिक पार्क बन गया। जगत सागर के पानी को बम्बा मौहल्ले से गऊशाला, दरबार स्कूल, रातानाडा होते हुए सीवरेज नाले के द्वारा विनायिका तक ले जाया गया। फतेहपोल के बाहर धाबाई कुएं से जालौरी गेट, सिवांची गेट तक जितने भी कुएं बावड़िया हैं उनमें से शायद एक दो जल स्रोत ऐसे होगे जिनका पानी पीने योग्य नहीं है। इस रास्ते पर 5 बावड़ियाँ व 24 कुएं हैं। इन कूओं से आज भी लोग
SR No.022813
Book TitleJignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibha Upadhyaya and Others
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year2011
Total Pages236
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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