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________________ 386 / Jijñāsa पानी की व्यवस्था के लिये सिंघी तलाई तथा इसकी फीडर नहर की खुदाई व मरम्मत का कार्य शुरू करवाया गया। बलदू, डीडवाना, बडाबरा, मोलासर और लाडणूं में घास के गोदाम खुलवाये। रेल की टंकियों से पानी पहुंचाने का प्रबन्ध किया गया।42 तारीख 8 जून, 1940 के गज़ट के अनुसार करीब 10 माह से अधिक समय के पश्चात् वर्षा हुई। इस कारण किसानों को राहत मिली। जोधपुर गवर्नमेन्ट ने अकाल पीड़ित किसानों की सहायता के लिये “हाथ हलिये" मुफ्त में देने का प्रबन्ध किया। साथ ही बोवाई के लिये बाजरा व जवार के अच्छी किस्म के बीजों की व्यवस्था करवाई। “उत्तम किस्म के और कम पानी में अच्छी उपज होने वाली बाजरा व जवार की दस-दस सेर की थैलियां हर कृषक को खरीफ की खेती के लिये मुफ्त देने की स्वीकृति दी गई।"45 इस तरह सहायता कार्यों में राहत पाकर मारवाड़ के किसानों ने महाराजा साहब के प्रति कृतज्ञता प्रगट की और तार प्रेषित किये। "माननीय महाराजा साहिब बहादुर के प्रति कृतज्ञता प्रगट करते ये तार गांवों से आये हैं" “कुचेरा के काश्तकार अपनी स्वामी-भक्ति से परिपूर्ण कृतज्ञता प्रकट करते हैं कि हम पर इस समय में तकावी, बीज के लिये धान और हाथ-हलिये बांट कर पिता समान दया करके रक्षा कर ली गई।" कुचेरा के काश्तकार "इस संकट में जब कि जीवन और मरण का प्रश्न है तकावी हमारे लिये दैविक सहायता है और इसके बलसे हम एक बार फिर अपने पैरों पर खड़े हो सकेंगे।" मूंडवा की जनता इसके अतिरिक्त महाराजा उम्मेदसिंहजी ने सभी जागीरदारों को निर्देश प्रेषित कर जागीरी गांवों में जल संसाधनों के निर्माण की व्यवस्था करवाई। इसके तहत जोजावर ठाकुर केसरीसिंहजी ने जोजावर के पास बांध बनवाया। इसी प्रकार राजदाढीसा ने भी नागौर जिले में स्थित गांव आकेली में भी एक कुएं का निर्माण कार्य करवाया जो कुआ आज भी है और गांववासियों के लिए पीने के पानी के रूप में काम में आ रहा है। सामान्य जीवन को प्रतिदिन प्रभावित करने वाली “जल संस्कृति” का प्रभाव लोकगीतों के माध्यम से भी देखा जा सकता है. "किण तो खिणाया नाडा नाडिया-पणिहारी जी एलो। किण तो खिणाया तळाव-वालाजी ओ। सुसराजी खिणाया नाडा नाडिया पणिहारी जी एलो। पीवजी खिणाया तळाव वालाजी ओ।" नवआंगतुक वधू का गाँव, मौहल्ले, बिरादरी आदि में परिचय कराने हेतु किसी समारोह की जरूरत नहीं थी, बस उसे सजा-धजा कर देवरानी-जेठानी या छोटी नणद के साथ पानी लाने के लिये तालाब पर भेजना ही पर्याप्त था। वहां पर गांव की सब औरतों से उसका तुरन्त परिचय हो जाया करता था। लेकिन इस प्रकार सज-धज कर निकलना नवोढ़ा के मन में संकोच व लज्जा का भाव भी जागृत करता था। “सरवर पाणीड़ा ने जाऊ सा, नजर लग जाय।"
SR No.022813
Book TitleJignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibha Upadhyaya and Others
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year2011
Total Pages236
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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