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मारवाड़ की जल संस्कृति / 385
इसी समय हाकिमों की देखरेख में चल रहे अकाल निवारक कार्य में 163 गांवों के केन्द्रों में लगे 20980 मजदूरों को (प्रतिदिन का औसत वेतन देने के लिये 25621/- रूपये खजाने से दिये गये। 34
भेजी गई । 35
अनाज की व्यवस्था के लिये 2000 बोरी अनाज फलौदी, बाड़मेर तथा पचपदरा में फरवरी 1940 में जब अकाल राहत कार्यों का आंकलन किया गया, उस समय "अकाल निवारण के मिनिस्टर इंचार्ज" की रिपोर्ट के अनुसार अगस्त से दिसम्बर तक की अवधि में हॉकिमों की अध्यक्षता में 996 केन्द्रों पर तथा पी. डब्ल्यू. डी की देखरेख में 75 बड़े कामों पर 65000 लोगों को प्रतिदिन काम दिया गया और इसका खर्च 30,00,000/- (तीस लाख) रुपये का हुआ। मवेशी की रक्षा के लिये 3,05,810 मन घास व चारा बाहर से मंगवाया इस पर 16,00,000/- ( सोलह लाख ) रुपये खर्च हुवे 135 दिनांक 17 फरवरी 1940 के गज़ट के अनुसार ये कार्य आगे भी चलते रहे। हालांकि इस समय तक कुछ वर्षा भी हो गई थी और बिलाड़ा एवं गोड़वाड़ क्षेत्र में अच्छी फसलें दिखाई दे रही थीं। 30
मार्च 23 के गज़ट के अनुसार मेड़ता परगने में वर्ष 1939 के दौरान 5.58 इंच पानी बरसा तथा मार्च 40 में 2.04 इंच वर्षा दर्ज की गई। लेकिन फेमीन के कार्य वहां पर उस समय तक भी चालू रखे गये। 37
इनके अलावा दुष्काल निवारण कार्य में लगे मजदूरों के लिये चिकित्सा सुविधा का प्रबन्ध भी किया गया। सुमेर समंद, हेमावास बांध, इलाइसिंग बेसिन, फलौदी चाटी रोड, डीडवाना कुचागण रोड, नारायणपुरा परबतसर रोड, गोटन मेड़ता रोड बांकली, मेड़ता जैतारण रोड, सेंदड़ा आदि केन्द्रों पर कार्यरत मजदूरों के लिये अस्थाई अस्पताल खोले गये। साथ ही इन केन्द्रों पर 17000 टीके लगाने की व्यवस्था भी की गई। 38
जोधपुर गवर्नमेंट के उक्त कार्यों की सराहना के लिये, मद्रास में बसे मारवाड़ियों की तरफ से, शास्त्री एवं शाह कम्पनी मद्रास के श्री बी. एस. कुम्भट ने निम्नलिखित संदेश प्रेषित किया।
"मुझसे कहा गया है कि इस प्रान्त की मारवाड़ी जनता की ओर से इस कठिन समय में जोधपुर गवर्नमेन्ट द्वारा किये गये उत्तम दुष्काल निवारक कार्यों के लिये मैं आप के द्वारा श्रीमान् महाराजा साहिब बहादुर तथा उनकी गवर्नमेन्ट के प्रति कृतज्ञता प्रगट करूं। हम सब दुष्काल पीड़ित लोगों के प्रति सरकार द्वारा सहानुभूति रूप में किये गये दुष्काल निवारक कार्यों की तथा उन अन्य संस्थाओं की जिन्होंने गवर्नमेन्ट के साथ रहकर कार्य किया है, प्रशंसा करते हैं। "
दुष्काल निवारण का कार्य अगस्त 1939 के दूसरे सप्ताह से प्रारम्भ किया गया। उस समय पानी की सप्लाई रेल द्वारा करने का प्रबन्ध किया गया। अधिक समस्या वाले इलाके बाड़मेर परगने के भाचबर, रामसर, बायतू, शिव में गडरा रोड, फलौदी में लोहावट, सामराऊ ढेलाना आदि स्थानों पर प्रतिदिन 2,500 से 10,000 गैलन पानी रेल से पहुंचाने का प्रबन्ध किया गया। इसके अलावा मेड़ता, डीडवाना, मूंडवा आदि स्थानों पर भी पानी सप्लाई का प्रबंध किया गया। 40
अकाल के कारण बहुत से किसानो के बैल मर गये थे। इस कारण करसण करना दूभर हो गया। इसके विकल्प के तौर पर शिव, शेरगढ़, नागौर, फलौदी, बाड़मेर आदि के रेतीले इलाकों के किसानों को "हाथ हलिये उपलब्ध करवाने का प्रबन्ध भी किया गया। 41
सन् 1939 में महाराजा श्री उम्मेदसिंहजी ने बबूल के पेड़ को "रॉयल ट्री" घोषित किया था क्योंकि अकाल के समय इसकी लकड़ी जलाने के काम में आती थी इसलिये उन्होंने इस पेड़ को संरक्षण देने की घोषणा की और इसके बीजों का छिड़काव स्थान-स्थान पर करवाया। जिसका उल्लेख भी गजटों में मिलता है।
मई 1940 के गजट के अनुसार उस समय डीडवाना परगने में भयंकर अकाल था। वहां अकाल निवारण का कार्य 106 केन्द्रो पर हाकिमों की देखरेख में चालू करवाया। इनके लिये करीब 70000/- रुपये के खर्च की स्वीकृति दी गई।